कविता / 19-04-2022
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वह समय जो कि अतीत हुआ,
स्मृति के परिप्रेक्ष्य में होता है,
हर मनुष्य के लिए अलग,
कई अतीत अनेक रूपों में!
वह समय जो भविष्य होगा,
कल्पना के परिप्रेक्ष्य में होता है,
हर मनुष्य के लिए अलग,
कई भविष्य अनेक रूपों में!
यह देख पाना तो है, आसान,
भविष्य उपजता है, वर्तमान से,
पर यह देखना है बहुत मुश्किल,
उपजता है अतीत भी, वर्तमान से!
और यह जो कि है वर्तमान,
सदा ही बस होता ही भर है!
न उपजता है, न मिटता है यह,
अतीत-भविष्य की तरह कभी!
हाँ, इसी पल तो होता है खयाल,
अतीत या भविष्य का भी!
ये खयाल जो उपजता-मिटता है!
इसी के जैसा, इसी के साथ,
इसी पल तो होता है मेरा होना,
ये खयाल नहीं है, -है सच्चाई!
जो हमेशा है, ज्यों की त्यों ही!
जैसे यह वर्तमान, जो कि हूँ मैं!
नहीं है, भविष्य या अतीत कभी!
अतीत या भविष्य लौट जाता है,
खोता-मिलता, बनता-बिगड़ता है,
स्मृति या कल्पना के साथ साथ,
मैं हूँ पल, वर्तमान, अचल अटल,
न गुजरता है, न लौटता है कभी!
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