कविता / 22-04-2022.
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एक समय पहचान बनी,
एक समय पहचान मिटी,
किन्तु समय की क्या पहचान?
एक समय पर स्मृति बनी,
एक समय पर स्मृति मिटी,
किन्तु समय की क्या पहचान?
पहचान हुई तो स्मृति हुई,
स्मृति हुई तो हुई पहचान,
किन्तु समय की स्मृति कहाँ,
स्मृति नहीं तो क्या पहचान?
अगर नहीं है स्मृति कोई,
और नहीं पहचान कोई,
तो समय का क्या अस्तित्व,
अस्तित्व नहीं, तो क्यों है नाम?
यह जो है समय की स्मृति,
यह जो स्मृति की है पहचान,
यह पहचान किसे हो याद,
क्या उसकी है कोई पहचान?
फिर भी कुछ है स्मृति से परे,
फिर भी कुछ पहचान से परे,
फिर भी कुछ है समय से परे,
निजता की है वही पहचान।
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