April 27, 2022

।। विद्यया विन्दतेऽमृतम् ।।

केनोपनिषद् : एक दर्शन (vision)

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बीच में चार दिनों तक क्लास नहीं हो सकी। 

इसलिए इस समय में क्लास की तैयारी से पहले, दो तीन बार उपनिषद् का अध्ययन और पुनर्पठन कर लिया।

कल-परसों, दो-तीन दिन इस उपनिषद् का पठन-पाठन होता रहा था। एक खण्ड कल पूरा हुआ।

आज सुबह खाली समय में कुछ लिख रहा था, तो एक कविता 'उसकी बातें' बन पड़ी। अभी ही दस मिनट पहले ही उसे पोस्ट भी किया।  फिर सोचा कि कविता की अंतिम दो पंक्तियों में यह निर्णायक मोड़ कैसे आया!

ध्यान आया, कि केनोपनिषद् के दूसरे खण्ड में वर्णित कथा के सन्दर्भ में इन्द्र, अग्नि और वायु और परमात्मा सबकी अपने ही भीतर विद्यमानता होने के सत्य की गूँज ही इस कविता में उभर आई। इसका सीधा संबंध द्वितीय खण्ड के निम्नलिखित मन्त्र में प्रयुक्त किए गए 'प्रतिबोधविदितं' पद से है :

प्रतिबोधविदितं मतममृतत्त्वं हि विन्दते।।

आत्मना विन्दते वीर्यं विद्यया विन्दतेऽमृतम्।।४।।

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