April 29, 2022

स्मृति, अतीत, विचार और समय

विचार या एक उपद्रव!

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कितनी अद्भुत् बात है!

स्मृति के माध्यम से अतीत को सत्यता प्रदान की जाती है, और अतीत के माध्यम से स्मृति को!

और विचार के माध्यम से ही उन दोनों के काल्पनिक अस्तित्व को!  

यदि विचार का आलंबन न हो तो किसी स्मृति और अतीत का अस्तित्व ही कैसे हो सकता है!

विचार जिस अतीत को महत्व, और जिस स्मृति पर ध्यान देता है, वही अतीत और उससे संबद्ध स्मृति तत्क्षण ही प्रत्यक्ष और सजीव प्रतीत होने लगते हैं। फिर भी यह भी आवश्यक है कि अतीत और स्मृति के बीच का सन्दर्भ एक ही, और समान हो। कोई ऐसा अतीत, जो किसी स्मृति के संबंध में अप्रासंगिक हो, - या कोई ऐसी स्मृति जो किसी अतीत के संबंध में अप्रासंगिक हो, विचार के लिए निरर्थक जैसे होते हैं। किन्तु और भी अधिक रोचक तथ्य यह है कि इस प्रकार अनायास ही समय भी सत्यता ग्रहण कर लेता है। और अतीत कहे जानेवाले इस समय / काल को भी एक यथार्थ भौतिक वस्तु की तरह सत्य मानकर उसके बारे में अनेक काल्पनिक सिद्धान्त निर्मित किए जाते हैं!  विचार एक ऐसी चमत्कारपूर्ण वस्तु अवश्य होता है, जो कि परिस्थिति, स्मृति या वर्तमान में अनुभव किए जानेवाले किसी विषय को सत्यता देता है, किन्तु विचार के बारे में दूसरा आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि विचार स्वयं ही अपने आपको भी सत्यता देता है। या, विचार से अलग क्या कोई और ऐसी अन्य वस्तु होती है, जो विचार के पैदा होने का कारण होती हो? तो यह भी सत्य है कि यदि होती भी हो, तो ऐसे किसी संभावित वस्तु / कारण का अनुमान भी पुनः विचार से ही संभव होता है।

इस पर यदि और अधिक ध्यान दें, तो कहा जा सकता है, कि अतीत की स्मृति, और स्मृति का अतीत, परस्पर अवलंबित होने से विचार पर आधारित एक ही गतिविधि के दो प्रकार होते हैं ।

किन्तु इसी प्रकार से भविष्य का अनुमान, और कोई कल्पित भविष्य भी, क्या ऐसी ही एक गतिविधि नहीं होता? और इस प्रकार जिस भविष्य को सत्य समझा जाता है, 'समय' नामक ऐसी कोई वस्तु (सत्य) हो सकती है?

इस सारी विवेचना में इस सच्चाई पर तो ध्यान जाता ही नहीं, कि यद्यपि होना (अस्तित्व) और होने का यह भान, चेतना या सहज बोध, एक नितान्त स्वाभाविक सत्य है, किन्तु इस सत्य को भी विचार 'अपने होने' और 'अपने होने को जानने' में रूपान्तरित कर देता है और एक आभासी 'मैं' की सृष्टि कर लेता है। इस आभासी 'मैं' को किसी वस्तु पर आरोपित किए जाते ही, विचार में ही अहंकार का उद्भव होता है।

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