April 21, 2022

सिर्फ ठंडा पानी

कविता 21-04-2022

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जब जब प्यास बुलाए, 

तब तब प्यास बुझाए,

जब जब लगती प्यास, 

पीता था कोल्ड्रिंक मैं!

सूख जाता था गला,

जब पीता था कोल्ड्रिंक मैं!

पर आखिर कितना पीता!

तो छूटा कोल्ड्रिंक पीना, 

हर बार ही पानी पीता!

सुराही या मटके का! 

जब जब प्यास बुलाती,

तब तब प्यास बुझाता,

गला भी नहीं सूखता,

ऐसा मटके का पानी!

छाछ पियो या कैरी का, 

पना तो ओर भी अच्छा,

या नींबू पानी भी अच्छा,

या बस मटके का पानी!

देखो कभी आज़माकर,

हाँ पानी हो शुद्ध साफ,

तुम फिर कभी न भूलोगे,

मटके का यह पानी! 

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