April 07, 2022

एक पुराना पोस्ट।

एक पुरानी कविता : नागलोक 

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बहुत पहले कभी, एक लम्बी कविता इस ब्लॉग में लिखी थी। जो विचार-रूपी सर्पों के लोक और बुद्धिजीवियों (की तुलना) के बारे में थी। अभी, पिछले कुछ समय से श्री विवेक अग्निहोत्री जी के द्वारा निर्देशित और पल्लवी जोशी -युगल द्वारा निर्मित फ़िल्म "काश्मीर फाइल्स" के बारे में बहुत कुछ लिखा, कहा जा रहा है। 

किसी ने कहा : "यह फ़िल्म नहीं एक आन्दोलन है!"

मुझे लगता है कि यह आन्दोलन भी नहीं, एक तरंग (wave) है, जो भारत और काश्मीर के अतीत की अनुगूँज है। अभी तक जो अन्तिम फ़िल्म कभी किसी टॉकीज़ में देखी थी, उसे शायद 1990 के आस-पास देखा था। वह भी तब, जब मैं बीमार हुआ था और जाँच के लिए पास के बड़े शहर में विशेषज्ञ से मिलने गया था। यद्यपि उस जाँच और चिकित्सा से मैं इसी निष्कर्ष पर पहुँचा, कि मुझे सलाह देनेवाला चिकित्सक स्वयं भी इस बारे में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सका था, और उसकी सलाह और इलाज के बावजूद जब मेरा स्वास्थ्य बिगड़ता ही चला गया तो मैंने स्वास्थ्य के बारे में सोचना तक बन्द कर दिया था। बाद में धीरे धीरे मेरी बीमारी अपने ही आप ठीक हो गई। क्यों, कैसे, -इस बारे में भी मैंने बाद में भी कभी कुछ नहीं सोचा। 

यू-ट्यूब पर पल्लवी जोशी द्वारा I AM BUDDHA शीर्षक से अपलोड किए गए कुछ वीडियो मैंने ज़रूर देखे, लेकिन उनके माध्यम से मैं तब इस बारे में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सका, कि उस माध्यम से वे कौन सा सन्देश देना चाहती रही होंगी।

"ताशकन्द फाइल्स" के बारे में यू-ट्यूब पर कुछ प्रारंभिक प्रिव्यू देखने से मुझे विवेक अग्निहोत्री के चिन्तन और दर्शन की दिशा का कुछ अनुमान हुआ। मैंने यह अनुभव किया कि न तो विवेक अग्निहोत्री जी और न पल्लवी जोशी ही किसी मिशन को पूर्ण करने के लिए यह सब कार्य कर रहे हैं,  -यह सब तो विधाता की योजना है, जिससे वे इस कार्य में संलग्न हैं। (शायद विधाता की ऐसी ही किसी योजना के अनुसार ही) मुझे भी किसी भी मनुष्य के नाम के बारे में विचार करने और उससे उसके जीवन के ध्येय का अनुमान करने में रुचि होती है।

जैसे जनमेजय ने किसी पूर्वकल्प में नाग-यज्ञ किया था, विवेक अग्निहोत्री जी का कार्य मुझे किसी नाग-यज्ञ के अनुष्ठान जैसा ही प्रतीत होता है। 

विवेक-रूपी अग्नि में विचार-रूपी सर्पों की आहुति देनेवाला यह अग्निहोत्री। शायद इससे मेरी कविता "नाग-लोक" की सुसंगति (analogy) देखी जा सकती है। 

प्रायः हम सभी विचार को ही ज्ञान समझने की भूल कर बैठते हैं। इस प्रकार का समस्त विचार केवल स्मृति की ही उपज और अनुगूँज है, इसे हम नहीं देख पाते। दूसरी ओर, एक वह विचार भी है, जो शाब्दिक रूप ग्रहण करने से पहले हमारे मन में कौंध की तरह प्रकट होता है। इसे प्रत्यभिज्ञा भी कहा जा सकता है।

प्रायः हर मनुष्य या तो भावना से प्रवृत्त होकर कार्य किया करता है, या फिर भावना का उन्मेष होने पर स्मृति का सहारा लेता है, और उसकी स्मृति में संचित किसी विचार के प्रेरित होने पर उस विचार का अनुसरण करता है। इसे ही संस्कार कह सकते हैं।

भावना से उत्स्फूर्त विचार और विचार से उत्स्फूर्त भावना यद्यपि भिन्न भिन्न प्रतीत नहीं होते हैं, फिर भी प्रेरणा और परिणाम की दृष्टि से उनमें बहुत भिन्नता होती है। भय या आकर्षण, ईर्ष्या या लोभ इसी प्रकार की वृत्तियाँ हैं, जिनकी पहचान, -भाव, भावना या विचार के रूप में भी की जा सकती है।

हमारा व्यक्तिगत और सामूहिक मानस भी इन्हीं वृत्तियों के लिए मानों क्रीड़ास्थल है, जिनमें असंख्य वृत्तियाँ उठती और विलीन होती रहती हैं । कोई वृत्ति किसी दूसरी वृत्ति को निगल लेती है, तो कोई किसी और को। यही "नागलोक" कविता की भूमिका थी।

विवेक अग्निहोत्री की कथा यहीं पूर्ण नहीं हो जाती। उन्होंने अब नस्ली नरसंहार (genocide) के लिए एक संग्रहालय निर्मित करने का आह्वान किया है। इसमें सन्देह नहीं कि उनकी दृष्टि किसी वैचारिक दर्शन या मिशन से प्रेरित न होकर भिन्न भिन्न मानवीय तथ्यों के सार्वकालिक मूल्यांकन पर केन्द्रित है। उनका यह स्वप्न (vision) किसी के प्रति घृणा या द्वेष से नहीं, बल्कि इस भावना से प्रेरित है कि इतिहास के यथार्थ की विडम्बनाओं को हम किन्हीं तथाकथित आदर्शों आदि के चश्मे से नहीं, सीधे ही देखें और अपने सामूहिक व्यवहार की परीक्षा उस परिप्रेक्ष्य से करें।

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