चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 2022
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हर नये साल (भारतीय नववर्ष) के पहले दिन अवश्य ही उसका फ़ोन आता है। वही शुभकामनाएँ, और प्रणाम। फिर आशीर्वाद पाने की कामना।
मैं बोला :
"आशीर्वाद सदैव है ही!"
वह जिद पर अड़ा रहा।
इस बार नया तर्क था :
"जैसे न्याय होना ही काफी नहीं होता, न्याय होता हुआ दिखाई भी देना चाहिए, वैसे ही आशीर्वाद होना ही काफी नहीं होता, -आशीर्वाद है, यह दिखाई भी देना चाहिए!"
मुझे याद आया :
एक बार श्री रमण महर्षि से उनके एक भक्त ने उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हुए ऐसा ही प्रश्न पूछा था :
"मुझ पर कृपा करें!"
"कृपा सदैव ही है!"
"तो मुझे प्रतीत क्यों नहीं होती! कृपया मेरे सिर पर हाथ रख दें तो मुझे विश्वास हो जाएगा।"
"अगला निवेदन होगा : कृपया स्टॉम्प-पेपर पर लिखकर दें! और कृपा प्रतीत न होने पर कोर्ट में दावा दायर किया जाएगा!"
मैंने उसे यह कथा सुनाई, तो वह बोला :
"आशीर्वाद सदैव है, इसका क्या प्रमाण हो सकता है?"
मैंने कहा :
"क्या तुम्हें कभी अपने आप का विस्मरण हो सकता है?"
सुनकर वह बस स्तब्ध रह गया।
"आप ठीक कहते हैं। प्रणाम ब्रह्मन्!"
सुनकर मैं भी बिलकुल ही स्तब्ध रह गया!
(गुडी पाडवा / 02 अप्रैल 2022)
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