कविता : 25-04-2022
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यूँ तो कुछ भी ज़रूरी नहीं होता,
फिर भी कुछ बेवजह नहीं होता!
किन्हीं वजहों का पता होता है,
कुछ का, लेकिन पता नहीं होता।
और जिनका भी अगर होता है,
पता न होना भी, एक होता है!
और हैरत है, कि ज़रूरी है क्या,
यह भी, शायद ही पता होता है!
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"कुछ भी!"
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