June 28, 2021

एक क़ोशिश या उम्मीद !

कविता : 28-06-2021

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हाँ, दूर तक सिर्फ अन्धेरा ही नजर आता है, 

ये भी क्या कम है कि कुछ तो नजर आता है!

रौशनी हो या अन्धेरा हो, कुछ भी दिखाई दे, 

ये भी तो पूछो कि ये किसको नजर आता है!

क्या आँखें देखती हैं, रौशनी को, या अन्धेरे को, 

इस तरह देखना, न देखना, किसको नजर आता है!

तय है, कोई तो देखता है, आँखें हों बन्द तब भी,

जिसे दिखाई देता है, वो किसको नजर आता है! 

मगर कोई क्यों नहीं देखता, उस देखनेवाले को, 

देखना चाहे भी अगर, वो किसको नजर आता है!

आँखें, दिल, ज़ेहन, तबीयत तो बदलते रहते हैं,

जो नहीं है बदलता कभी, वो किसको नजर आता है!

वक्त बदलता है, याद भी, पहचान, बदल जाती है,

'देखना' जो नहीं बदलता, वो किसको नजर आता है!

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