कौतूहल!
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भविष्य की कल्पना,
और
कल्पना का भविष्य
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अतीत के संबंध में उतनी दुविधा, अनिश्चय, डर, आशंका, संदेह या संशय नहीं होता, जितना कि भविष्य को लेकर हुआ करता है।
जिस तरह से वर्तमान, अतीत का ही कुल जमा परिणाम होता है, उसी तरह से काल्पनिक भविष्य या / और, कल्पना का भविष्य (अर्थात् जिसकी कल्पना की जाती है), और वस्तुतः जो भविष्य में घटित होता है, भी वर्तमान को प्रभावित करते हैं।
अतीत को प्रायः ऐसी वस्तु समझा जाता है जिसे बदल पाना लगभग असंभव सा प्रतीत होता है किन्तु वर्तमान (जिसे वास्तव में 'भविष्य का बीज' कहा जा सकता है), और भविष्य को किसी हद तक बदला जा सकता है, ऐसा भी लगता है।
किन्तु क्या हम वर्तमान या भविष्य को, इतना भी जानते हैं कि उसे बदला जा सके? और अगर हम जानते हैं, तो स्पष्ट ही है कि उसे बदल नहीं सकते । और हम उसे / उन्हें अगर नहीं जानते, तो उसे / उन्हें बदल पाने का प्रश्न ही कहाँ उठता है?
फिर हम ज्योतिषियों के पास क्यों जाते हैं!
क्या यह भी पूर्व-निर्धारित, दैववश होता है?
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