June 28, 2021

यमदण्ड

ब्रह्मदण्ड और संसारगति

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घोर तप के माध्यम से महापंडित रावण ब्रह्माजी से सहस्र वर्षों की आयु का वरदान जब प्राप्त कर चुका, तो उसने तय किया कि अभी इतना भी पर्याप्त है। दस सहस्र वर्षों में और अधिक  तप करते हुए मैं निरंतर अमर बने रहने की आशा कर सकता हूँ। तब उसने पृथ्वीलोक, द्युलोक और देवलोक पर विजय प्राप्त की। अंततः उसने इंद्र पर विजय पाने का यत्न किया, किन्तु इन्द्र ने उसे अपने समान शक्तिशाली और सामर्थ्य-वान संतान होने का प्रलोभन देकर उससे संधि कर ली। अपने दुर्भाग्य या दुर्बुद्धि से रावण इस प्रलोभन से मोहित हो गया। 

तब रावण ने यमलोक पर आक्रमण किया। यमराज के सभी रक्षक, सैनिक और सेनापति रावण के द्वारा मार दिए जाने पर यमदेवता ने रावण पर वार करने के लिए यमदण्ड का प्रयोग करना चाहा। 

तब ब्रह्माजी वहाँ आए और यमराज को ऐसा करने से रोका । वे बोले :

यमराज!  तुम स्वयं भी यमपाश से बँधे हो, जिसका उल्लंघन करना तुम्हारे लिए अक्षम्य अपराध होगा। यदि तुमने रावण पर इसका प्रयोग किया, तो मेरा विधान एवं रावण को मेरे द्वारा दिया गया वरदान मिथ्या हो जाएगा, और तब तो संपूर्ण जगत का ही विनाश अर्थात् प्रलय हो जाएगा। इसलिए तुम रावण से पराजय स्वीकार कर लो। यही तुम्हारे और जगत के लिए शुभ और कल्याणकारी होगा।

इस प्रकार रावण ने अपने आप को विश्वविजेता समझ लिया। 

महापंडित रावण की ही परंपरा में आज का विज्ञान भी विधाता के कार्यों में तथा जेनेटिक स्ट्रक्चर और जीन्स की बनावट में भी  जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से हस्तक्षेप करते हुए इस हद तक जा पहुँचा है कि जैवास्त्र के निर्माण के क्रम में कोरोना जैसा वायरस पैदा कर जाने-अनजाने संसार में फैला चुका है।

इसी क्रम में वह एजिंग जीन्स की रचना में फेर-बदलकर मनुष्य को अमर बनाने के विचार से भी मोहित है।

यह भी एक विरोधाभास,  विसंगति और विडंबना ही है कि वही कोरोना वायरस के विरुद्ध काम आनेवाली वैक्सीन भी बनाने के लिए भी यत्नरत है। 

प्रश्न यह है कि क्या यमराज इस बार भी अपने यमदण्ड का प्रयोग करने से रुक जाएँगे? 

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