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अजीब दासताँ है मन,
कहाँ शुरू कहाँ खतम,
ये मन है चीज क्या,
समझ सके न तुम न हम!
ये जानता है खुद को या,
जानता है कोई इसे,
ये मैं है या कि है मेरा,
कहाँ पता हुआ किसे?
कभी तो होता है बोझ,
कभी तो होता है रोग,
कभी तो होता है गम,
कभी तो होता है सोग,
जहाँ को छोड़ भी दे कोई,
इसे कहाँ, मगर कोई,
न ये कभी छोडे़ हमें,
तरीका है, कहाँ कोई!
क्या मन है आईना ही खुद,
क्या चेहरा वही है खुद,
क्या खुद को देखता है खुद,
ये मामला है क्या अजीब!
जरूर गहरा कोई राज है,
जिसे है खोजना जरूर,
ये खुद से कितने पास है,
या है ये खुद से कितना दूर!
कभी तो खो भी जाता है,
मगर फिर लौट भी तो आता है,
लौटने पर ही याद आता है,
कहीं नहीं गया था ये!
अजीब दासता है ये,
अजीब वास्ता है ये,
अजीब रास्ता है ये,
अजीब दासताँ है ये!
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अजीब दासताँ है ये,
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