कविता
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आग लगने पर चले हैं खोदने कुआँ,
तय नहीं, पानी मिलेगा या नहीं!
इस समय तो व्यस्त हैं फुरसत कहाँ,
आग बुझ जाए तो यही काफी है!
अंगार थे छिपे हुए राख के नीचे,
और सब थे ध्यानमग्न, ध्यान में डूबे!
आग कैसे लग गई, फ़ुरसत से सोचेंगे,
बच सके कोई अगर तो यत्न करेंगे ।
इस समय यही किया जा सकता है,
अब कहाँ पर दूसरा कुछ रास्ता है!
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