April 04, 2021

एक कविता यह भी!

Dedicated to myself! 

"सेल्फी"

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कितना लिखते हो तुम हर दिन, 

इतना क्यों लिखते हो! 

कितना पढ़ते हो तुम हर दिन, 

इतना क्यों पढ़ते हो! 

देखो दुनिया है कितनी सुन्दर, 

कितनी अद्भुत् है दुनिया!

अपनी आँखें कर लो ताजा,

एक नजर तो देखो दुनिया! 

पढ़ना-लिखना छोड़ो भी तुम, 

इतना क्यों पढ़ते-लिखते हो! 

क्या तुमको आराम नहीं है, 

या फिर कोई काम नहीं है, 

लिखने पढ़ने से क्या होगा, 

क्यों फुरसत का नाम नहीं है? 

यह दुनिया है रंगबिरंगी इतनी, 

थोड़ा तो आँख उठाकर देखो, 

या लिखते-पढ़ते, मर-खप कर, 

दुनिया से रुख़सत हो जाओ!

अपना आज भी खुद ही लिख लो,

अपना कल भी खुद ही पढ़ लो,

तो लिखना पढ़ना काम आ जाए! 

कितना लिखते हो तुम हर दिन, 

कितना पढ़ते हो तुम हर दिन! 

क्या उम्मीद है पुरस्कार की, 

या उम्मीद है नोबेल की,

दुनिया के तौर तरीके देखो,

क्यों है उम्मीद तुम्हें कल की! 

क्यों तुम इतनी मेहनत करते हो,

फिर भी क्यों गफ़लत करते हो, 

कितना लिखते हो तुम हर दिन, 

इतना क्यों लिखते हो, 

कितना पढ़ते हो तुम हर दिन, 

इतना क्यों पढ़ते हो!! 

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