अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति ।
नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।
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आस्था जितनी अधिक दुर्बल होती है,
संशय उतना ही अधिक दृढ़ होता है।
और संशय जितना अधिक दृढ़ होता है,
आग्रह उतना ही अधिक प्रबल हो जाता है।
किन्तु संशय का निवारण होते ही,
अविचल निष्ठा उत्पन्न होती है।
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