दो कविताएँ कोरोना काल में,
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कोई अपना नहीं किसी का यहाँ,
ज़िन्दगी इतनी अकेली क्यों है!
हरेक शख्स बूझना जिसे चाहे,
ज़िन्दगी ऐसी पहेली क्यों है?
खेलते ख़ुशी ग़म, दोनों हैं साथ,
ज़िन्दगी उनकी सहेली क्यों है?
गद्य है, पद्य है, कहानी-कविता,
ज़िन्दगी अनोखी शैली क्यों है?
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जब कोई लौटता है अपनी तरफ़,
नींद आती है तब उसे बहुत!
भूलने लगती है तब उसे दुनिया,
याद करती है तब उसे बहुत!
वो खोया खोया हुआ रहता है,
ख्वाब आते हैं तब उसे बहुत,
वो सोया सोया हुआ रहता है,
जागती रहती है दुनिया बहुत!
दर्द के हाशिए पर होती है नींद,
नींद के हाशिए पर होता है दर्द!
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