मुझे कहाँ कुछ लिखना है,
मुझे कहाँ कुछ दिखना है!
लिखना ऐसा कुछ रोचक,
पाठक रह जाए भौंचक,
स्तब्ध समीक्षक आलोचक,
मुझे कहाँ कब बिकना है!
माया तो आनी जानी है,
स्टेटस, यश भी आना-जाना,
स्थापित या विस्थापित होकर,
मुझे यहाँ कब टिकना है!
फिर भी लिखता रहता हूँ,
बना रहे जिससे अभ्यास,
योग-साधना, बुद्धि-विलास,
मुझे यही जप जपना है!
पढ़े ना पढ़े कोई मुझको,
चाहे किया करे उपहास,
शत्रु-मित्र सब मुझको सम हैं,
यहाँ कौन कब अपना है!
कट जाए छोटा सा जीवन,
थोड़ा शान्ति, सुकून से,
वैसे भी कहते हैं ज्ञानी,
यह जग झूठा सपना है!
मुझे कहाँ कब छपना है!
मुझे कहाँ कुछ लिखना है,
मुझे कहाँ कुछ दिखना है!
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