और वृत्ति ही समय है!
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बाद में अगली परिक्रमा के समय जब हम दोनों साथ साथ उस पथ पर जा रहे थे तो उसने कहना शुरू किया --
"इसे यूँ समझो! जिसे हम सब 'समय' समझते हैं, वह तो हमारे अपने अपने निजी और अलग अलग समय में दिखाई देनेवाला संसार या सांसारिक, लौकिक या भौतिक समय होता है लेकिन हमारा वैयक्तिक समय उन पाँच वृत्तियों के रूप में होता है जिसे हम अपना जीवन समझते हैं।"
अचानक सब कुछ बहुत आसान लगने लगा था।
"तो इस तरह हर किसी का अपना अपना, दूसरों के समय से नितान्त अस्पर्शित जीवन होता है जो स्मृतिगत ही होता है।"
"Exactly!"
उत्साहित होकर वह बोल पड़ा।
"हाँ! तो मैं कह रहा था कि यही पाँच वृत्तियाँ जिनका उल्लेख महर्षि पतञ्जलि ने किया है, लौकिक समय के वृत्ति-रूपी पाँचों आयाम हैं।"
"अरे वाह! यह कहाँ से पढ़ लिया!!"
मुझे उससे ईर्ष्या हो रही थी और इसलिए मैंने कपटपूर्वक उससे पूछा। पर वह शान्तिपूर्वक चुपचाप साथ चलता रहा।"
"कहीं पढ़ा नहीं, बाबा के उस भक्त ने ही बातों ही बातों में बाबा के बारे में बतलाते हुए यह सब मुझसे कहा था।"
सुनकर मुझे अपराधबोध अनुभव हुआ।
"इतनी भी ईर्ष्या क्यों!"
-मैंने सोचा।
अब हम जब कभी भी परिक्रमा पर साथ जाते थे, अकसर उस समाधि पर जाने लगे थे।
और मुझे अनायास ही मेरे उस बौद्धिक प्रश्न का उत्तर भी मिल गया था कि मुक्ति में इन तमाम अलग अलग निजी समयों का क्या होता होगा!
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