नर्मदा परिक्रमा संक्षिप्त
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पुनः एक बार उस परिक्रमा पथ पर, जहाँ पता नहीं कितने दीर्घ काल से असंख्य श्रद्धालु सांसारिक पापात्मा, पुण्यात्मा, योगी, तपस्वी, माँ नर्मदा की प्रदक्षिणा करते आ रहे हैं, उसके साथ मैं बाबा भोलेनाथ की समाधि पर जा पहुँचा।
उस दिन वहाँ एक और वृद्ध व्यक्ति से भेंट हुई । पता चला यह तो वही भक्त थे जो कि बाबा के अंतिम समय तक उनके साथ थे। बहुत दूर से वे आए थे और शायद ही इसके बाद कभी आ सकेंगे, क्योंकि उनकी उम्र भी बहुत अधिक थी। उन्हें भी पता था कि वे संभवतः आखिरी बार समाधि के दर्शन के लिए आए हैं।
हम दोनों पास ही धरती पर बैठ गए। उन्हें न तो ठीक से सुनाई देता था और न ही दिखाई देता था। जब हम वहाँ पहुँचे तो यह देखकर मुझे और उसे भी थोड़ा आश्चर्य हुआ कि वे समाधि पर, उस चबूतरे पर बैठकर श्रीरामरक्षा-स्तोत्र का पाठ कर रहे थे।
उनका पाठ पूरा हो जाने पर हमने उन्हें प्रणाम किया तो बोले :
"आ गए सही स्थान पर।"
हम दोनों कुछ नहीं बोले, तो वे ही बोलने लगे
"यही मेरा गुरुमंत्र है जो मुझे बाबा से प्राप्त हुआ था।
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।।
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम।।२८।।
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।।२९।।
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु-
र्नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।३०।।
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।।
परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।८।।
कविः पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः।।
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।९।।
प्रयाणकाले मनसाचलेन भक्त्या युक्तः योगबलेन चैव।।
भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।।
।।१०।।
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः।।
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं सङ्ग्रहणेन प्रवक्ष्ये।।११।।
सर्वद्वाराणि संयम्य मनो हृदि निरुध्य च।।
मूर्ध्न्याधायात्मनः प्राणमास्थितो योगधारणाम्।।१२।।
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।१३।।
(श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय ८)
फिर हमारी तरफ देखते हुए बोले -
इन दोनों पाठों की फलश्रुति समान ही है।।
यही बाबा भोलेनाथ से हमें प्राप्त हुआ था।
कहते हुए फिर धीरे धीरे चलते हुए वहाँ से चले गए।
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