उसने कहा था।
"तुम सोचते क्यों नहीं विनय!"
उसने कुछ व्यंग्य / उपहासपूर्वक कहा था!
वाच्यार्थ यह था कि तुम सोचो! और लक्ष्यार्थ यह कि तुम अत्यन्त बुद्धिहीन और मूर्ख हो! तुममें सोचने की शक्ति तक नहीं है।
किसी समय / कस्मिंश्चित्काले, यह हुआ था। वह समय जो स्मृति में है और स्मृति ही है। अर्थात् वृत्ति ही तो है।
मेरा, अर्थात् उसका, जिससे कि यह कहा गया था, इस के तात्पर्य पर ध्यान ही नहीं गया। अगर मेरा ध्यान इसके वाच्यार्थ या लक्ष्यार्थ पर जाता तो शायद पूछता :
"तुम साँस क्यों नहीं लेते!"
पहले वह विनय को मूर्ख समझ रहा था, लेकिन विनय यदि यह प्रतिप्रश्न करता, तो वह विनय को निश्चय ही पागल भी समझता। वैसे इससे विनय को भला क्या फर्क पड़ता। विनय को पता था कि विनय न तो सोचता है, न साँस लेता है। सोचना और साँस लेना प्राणों की गतिविधि है। विनय तो सिर्फ जानता भर है। जानना कोई गतिविधि नहीं है। जानना न तो स्मृति है, न जानकारी है, यह तो स्वभाव है। प्राणों की शक्ति से साँस का चलना या विचारों का आना जाना आदि प्रकृति का कार्य है। विनय बस इतना जानता है कि यह जो प्रकृति है, उसके अपने ही नियमों से परिचालित होती है और विनय का उस पर कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन विनय यह भी जानता था कि प्रकृति ही वृत्ति / प्रवृत्ति है और वृत्ति ही समय है। यही परिवर्तन है और विनय का परिवर्तन से क्या संबंध हो सकता है :
विनय शायद कहता :
न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।१४।।
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः।।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।
प्रभु एक ही है, जबकि वही प्रभु विभु का रूप लेते हुए असंख्य भी है।
विशेषया वृत्तया नयति इति विनयः
सं याति आयाति वा इति समयः।।
आयाति, याति वा इति वृत्तिः अपि
आभासो वा अध्यारोपः इति उपाधिः।।
कस्मिन् काले जायते बभूव वा जगत्?
यदा हि जायते वृत्तिरेषा।।
वृत्तिर्सहैव भासते कालः
काले हि वृत्तिर्तदेव सा।।
इतरेतरमध्यासमिति
अनयोरन्योन्यकृतम्।।
***
तथापि महर्षि पतञ्जलि के योगदर्शन-सूत्रों के अनुसार,
समय / काल :
प्रमाण, विपर्यय, विकल्प निद्रा और स्मृति रूपी वृत्ति-मात्र है -
प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः ।।
प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।।
विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम्।।
शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।।
अभाव-प्रत्यययालम्बना वृत्तिः निद्रा।।
अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः।।
इसलिए समय की अनुभूति होती है -- प्रमाण।
इसलिए जिसे समय कहा जाता है समय उस वस्तु का विपर्यय है,
इसलिए जिसे समय कहा जाता है उसे न जानते हुए या इस अर्थ में उसके शून्य होने से समय विकल्प है।,
चूँकि निद्रा में किसी प्रत्यय का अस्तित्व नहीं प्रतीत होता, इसलिए निद्रा है समय, और अंत में --
उस वृत्ति रूपी समय को किसी अर्थ में जाना तो गया किन्तु अब वर्तमान में, वह नहीं उसके स्थान पर कोई दूसरी वृत्ति है और उस वृत्ति को पुनः अस्तित्व में लाया गया, इसलिए समय स्मृति है।
।।इति कालाख्यानम्।।
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