May 11, 2023

बाबा भोलेनाथ

एक अनसुलझा रहस्य

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नर्मदा किनारे पर परिक्रमा पथ पर उसके साथ टहलते हुए हम दोनों रुक गए।

उसने पूछा : "यहाँ से एक किलोमीटर की दूरी पर पर्वत पर ही एक स्थान है। वैसे तो वहाँ पूर्णिमा और अमावस्या के दिन कुछ यात्रियों के अलावा कोई नहीं आता जाता, किन्तु कुछ और लोग जिन्हें इस स्थान का महत्व ज्ञात है कभी कभी और जब भी यहाँ आते हैं, श्रद्धावश ही सही, समाधि के दर्शन करने वहाँ अवश्य जाया करते हैं।"

"हाँ चलते हैं! हम भी अनायास प्राप्त हुए इस सौभाग्य से वंचित क्यों रहें!"

एक चबूतरा था, जिस पर एक शिवलिङ्ग स्थापित था। पास ही खड़ी चट्टान पर धुँधले अक्षरों में लिखा था :

"बाबा भोलेनाथ की समाधि यहाँ है।"

हमने प्रणाम किया और वहाँ पड़े चने-चिरौंजी के एक दो दाने उठाकर मुँह में डाले।

लौटते हुए उसने बताया कि वैसे तो यह समाधि बहुत पुरानी भी नहीं है। एक बार बाबा भोलेनाथ यहाँ से कुछ दूर स्थित किसी स्थान से यहाँ आने के लिए किसी बस में सवार हुए थे। बस में काफी जगह थी और भीड़ भी नहीं थी। बाबा को कुछ लोग तो बहुत बड़ा संत या महात्मा मानते थे, कुछ लोग उनका मजाक भी उड़ाते थे। जब वे बस की प्रतीक्षा में सड़क किनारे और दो तीन लोगों के साथ खड़े थे तो सबसे कह रहे थे : इस बस में मत चढ़ना, इसका एक्सीडेंट होनेवाला है। लोग कौतूहल, भय और संदेहपूर्वक उनकी बातों को चुन रहे थे। कुछ लोग उनकी बात मान रहे थे और उस बस के आने पर भी उस पर नहीं चढ़े। जब बाबा खुद भी अपने एक भक्त के साथ बस पर चढ़ गए तो लोगों को आश्चर्य हुआ पर कोई क्या कह सकता था। दूसरे दिन सुबह खबर आई कि बस का ब्रेक फेल हो जाने से वह लुढ़क गई और उसमें ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा तीन चार लोग ही बचे किन्तु बाकी बहुत घायल हुए जिनमें से भी दो तीन की मृत्यु हो गई। बाबा के साथ उनका जो भक्त बैठा था, उसे और बाबा को भी खरोंच तक नहीं आई। बाबा ने तो बस में बैठते ही समाधि लगा ली थी और उनका भक्त हमेशा की ही तरह उनके साथ शान्ति से बैठा हुआ था। जिस समय बस दुर्घटनाग्रस्त हुई, तब भी वे दोनों इसी स्थिति में थे। उनके भक्त का ध्यान जब उन पर गया तब भी वे समाधि में ही डूबे प्रतीत हो रहे थे। सहायता के लिए आसपास के कुछ ग्रामीण आए तो लोगों को पता चला कि बाबा को कहीं चोट लगना तो दूर, खरोंच तक नहीं आई थी। लेकिन फिर पता चला, उसी हालत में बाबा का देहान्त हो चुका था। काफी लोग इकट्ठे हो गए थे और डॉक्टर ने भी जब उनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी तो उनका अंतिम संस्कार पहले से ही जैसा कि उनके द्वारा बताया गया था, उसी अनुसार वैसे ही कर दिया गया। फिर उनकी कुछ अस्थियाँ तो नदी में कहीं विसर्जित कर दी गईं और कुछ को यहाँ धरती में समाधि दे दी गई। और एक कच्चा-पक्का चबूतरा उस पर बना दिया गया। और उस पर एक शिवलिङ्ग स्थापित कर दिया गया। आज भी लोग इस बारे में कभी कभी चर्चा किया करते हैं।"

तब तक हम वहाँ से परिक्रमा-पथ पर लौट आए थे।

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