May 16, 2023

कथा के सन्दर्भ

सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य 

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किसी भी कथा के कितने ही सन्दर्भ हो सकते हैं और उससे भी अनेक गुना और कितने परिप्रेक्ष्य। वह कथा जो किसी घटना पर आधारित होती है जिसका कोई स्थान और समय है ऐसा लगता है। इस प्रकार स्थान, समय, प्रसंग, सन्दर्भ और परिप्रेक्ष्य सभी एक ही यथार्थ / दृश्य / वास्तविकता के अनेक ओवर भिन्न भिन्न पक्ष होते हैं। जबकि वास्तविकता इन सबसे अप्रभावित और अछूती और निरपेक्ष होती है। वास्तविकता न तो इनकी उत्पत्ति का कारण होती है न ये वस्तुतः उत्पन्न या नष्ट होते हैं। ये विभिन्न मान्यताओं के रूप में मन में प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं। यह 'मन' जो स्वयं ही मान्यता ही तो है।

इसलिए इस पूरी गतिविधि (phenomenon) को शास्त्रीय भाषा में इतरेतर अध्यास या इतरेतर आभास कहा जाता है। इस इतरेतर आभास या अध्यास में जिस एक का आभास / अध्यास जिस दूसरे में होता है, वे दोनों ही वस्तुतः अस्तित्वहीन होती हैं। जैसे रज्जु सर्प न्याय के उदाहरण में यह प्रश्न उठता है कि रज्जु में दिखलाई पड़नेवाला सर्प पहले देखे गए सर्प की स्मृति है या रज्जु में प्रतीत होनेवाली आकृति की कल्पना मात्र है, जिसे उस स्मृति पर अध्यारोपित कर दिया गया, या फिर उस स्मृति को उस कल्पना पर अध्यारोपित कर दिया गया? स्वाभाविक रूप से यही तय है कि उस घटना, सन्दर्भ,  प्रसंग, परिप्रेक्ष्य आदि का आश्रय और अधिष्ठान अवश्य ही कोई ऐसी एक चेतन सत्ता ही है, जिसकी सत्यता पर न तो संदेह किया जा सकता है और न जिसे कल्पना या स्मृति कहा जा सकता है। इस प्रकार कल्पना और स्मृति आभास या वृत्ति है और 'जिस' चेतना में ये पुनः पुनः प्रकट और विलुप्त होती है वह न तो कभी प्रकट होती है, और न ही विलुप्त होती है। वह 'चेतना' वास्तव में निर्वैयक्तिकता और निजता है। फिर 'मन' क्या है? क्या यह 'मन' स्वयं भी ऐसी ही एक इतरेतर आश्रित स्वयंभू घटना या प्रसंग ही नहीं है जो निज होते हुए भी अनित्य होता है, क्षणभंगुर आभास। इस प्रकार से,  निजता और नित्यता आधारभूत सत्य है, 'मन' एक तात्कालिक पहचान। पहचान और स्मृति भी जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है इतरेतर आश्रित, परस्पर अवलंबित दो प्रतीतियाँ हैं, क्योंकि पहचान ही स्मृति का प्रमाण, और स्मृति ही पहचान का आधार होती है। बुद्धि से ही उन दोनों के बीच कृत्रिम विभाजन दिखाई देता है और इस विरोधाभास पर कभी किसी का ध्यान ही कहाँ जाता है?

यह हुई एक और आत्मकथा। 

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