May 10, 2023

अंतिम अरण्य!

निर्मल वर्मा

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"कौए और काला पानी" पहली रचना थी जिसे पढ़ते ही मुझे अनुभव हुआ कि यह साहित्य औरों से बिल्कुल ही अलग है। फिर मैंने "एक चिथड़ा सुख", "वे दिन" भी पढ़ा। इन्हें मैं पुनः पुनः पढ़ सकता हूँ। "एक दिन का मेहमान", "दूसरी दुनिया",  ये कहानियाँ भी, और उपन्यास भी मानों किसी अदृश्य सूत्र में पिरोए होते हैं, जहाँ कोई घटना नहीं, बस मनःस्थितियाँ ही होती हैं। किन्तु "कौए और काला पानी" तथा "अंतिम अरण्य" में उस सूत्र को अनायास ही महसूस किया जा सकता है। इनमें कोई सवाल नहीं होता, बस "जो है", उसका सरल सा वर्णन होता है। इसीलिए कोई भी रचना न तो बोझ बनती है, और न ही बौद्धिक दुरूहता। और न किसी विशेष रहस्य या सत्य को प्रकट करती है। फिर भी छोटे छोटे वाक्यों में बड़े बड़े सत्यों का अनायास ही दर्शन किया जा सकता है।

पहले मैं साहित्य और बौद्धिकता को ही अरण्य समझता था, अब इंटरनेट नामक एक और अरण्य से पहचान हुई। इसलिए याद आया! 

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