कविता : 25-02-2023
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यह सही है!
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न्यूरो-साइन्टिस्ट्स कहते हैं,
कि मस्तिष्क,
एक रिज़ोनेन्स चैम्बर की तरह,
काम करता है!
शायद यह सही है।
कोई विचार बाहर से आता है,
और इस चैम्बर में अटक जाता है!
मस्तिष्क की दीवारों से टकराकर,
कुछ समय भटकता है,
और जब ऐसे बहुत से विचार,
धीरे धीरे मस्तिष्क में आ जाते हैं,
तो वे एक दूसरे से टकराते होंगे!
उनमें से ही एक विचार,
"मैं सोचता हूँ।",
यह भी होता है!
लेकिन दर-असल,
न तो कोई "मैंं",
न कोई 'सोचना',
वहाँ होता है!
एक निविड शून्य अन्तराल में,
चेतना, समय से विच्छिन्न और परे होती है,
क्योंकि समय भी विचार ही तो है!
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