February 25, 2023

युद्ध काल / एक वर्ष

युद्ध और संघर्ष

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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को प्रारंभ हुए एक वर्ष हो चुका।युद्ध प्रारंभ होने के प्रत्यक्ष और परोक्ष कारण इतने और बहुत भिन्न भिन्न हैं कि उन्हें एक साथ देख पाने के लिए आवश्यक है कि धैर्य के साथ उन पर ध्यान दिया जाए। 

प्रत्यक्षतः तो दोनों पक्षों के अपने अपने दावे हैं, जिनके अनुसार एक पक्ष आक्रान्ता और दूसरा आक्रान्त है। किन्तु दोनों पक्षों से भिन्न शेष विश्व तटस्थ है यह सोचना भूल है। हर राष्ट्र के अपने हित हैं और हर राष्ट्र के हित-अहित भी दोनों ही पक्षों के युद्ध से जुड़े हैं। ऐसा नहीं है कि स्वयं यूरोप या एशिया के तमाम राष्ट्रों के बीच कोई मतभेद नहीं है और पूरा संसार इस युद्ध से तटस्थ और निष्पक्ष है। किन्तु क्या राष्ट्र स्वयं ही केवल एक अवधारणा ही नहीं है! क्या राष्ट्र भी किन्हीं समूहों द्वारा ऐतिहासिक कारणों से प्राप्त की गई सत्ता की शक्ति के अलग अलग केन्द्र ही नहीं हैं? और, क्या प्रत्येक ही राष्ट्र में इस शक्ति पर अधिकार प्राप्त करने के लिए अनेक पक्ष और उनके बीच परस्पर संघर्ष नहीं हैं! संघर्षरत ऐसे विभिन्न पक्षों के भी अपने अपने हित और अहित, और भिन्न भिन्न लक्ष्य हैं। जैसे ये पक्ष राजनीतिक सत्ता के केन्द्र सम्मिलित रूप में एक राष्ट्र की पहचान रखते हैं फिर भी केवल तात्कालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान में रखते हुए एक  दूसरे के मित्र, शत्रु या राष्ट्र हैं, वैसे ही दुनिया के छोटे बड़े सभी राष्ट्र और उनका गठजोड़ भी ऐसा ही एक अवसरवादी गठजोड़ है, जो अपने अपने अलग अलग तात्कालिक और दीर्घकालिक लक्ष्यों पर ध्यान देते हुए अपने 'राष्ट्रीय' हित तय करता है और युद्ध के दोनों पक्षों के प्रति उनका दृष्टिकोण अवसर के अनुसार तय होता और बदलता रहता है। तात्पर्य यह कि युद्ध एक सतत प्रक्रिया है, न कि कभी कभी होनेवाली एक छिटपुट घटना या कोई संयोगमात्र। संघर्ष अनेक स्तरों और प्रकारों में होता रहता है, और युद्ध उसी संघर्ष का ही एक विशिष्ट और प्रत्यक्ष प्रतीत होनेवाला एक प्रकार भर है। स्पष्ट है कि युद्ध के कुछ अप्रत्यक्ष कारण भी होते हैं जिन पर सहसा ध्यान ही नहीं जाता और कुछ शक्तियाँ भी यही चाहती हैं कि वे कारण सर्वसाधारण मनुष्य की दृष्टि से ओझल ही रहें। युद्ध इस दृष्टि से एक अत्यन्त ही कुटिल, क्रूर, निर्दय और निष्ठुर एक बहुत बड़ा व्यवसाय है, जिसमें सतत विकास की बहुत संभावनाएँ हैं, और इस व्यवसाय में संलग्न वे समूह हैं जो हथियारों का निर्माण और व्यापार करते हैं। उनके व्यावसायिक हित इस पर निर्भर हैं कि कहीं न कहीं युद्ध सतत ही चलता रहे और उनकी तिजोरियाँ लगातार भरती रहें। उन्हें मनुष्य की पीड़ा में भी एक अवसर दिखाई देता है और वे उस अवसर को किसी भी कीमत पर गँवाना नहीं चाहते हैं। मनुष्य की पीड़ा पर घड़ियाली आँसू भी वे अवश्य ही बहा सकते हैं, क्योंकि वह भी उनके व्यवसाय के संवर्धन में सहायक होता है।

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