February 10, 2023

बीते दिन

संकल्प, निश्चय और संशय
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मार्च 17, 2016 को एकाएक ही यह स्पष्ट हो गया था, कि वह स्थान छोड़ना है ।
दूसरे दिन जब नल में पानी नहीं आया, तो मैं घबरा गया । किन्तु कहाँ शिफ्ट होना है यह समझ में नहीं रहा था । दूसरे दिन फोन आया - मेरे लिए नर्मदा किनारे एक एकॉमोडेशन  उपलब्ध है ।
"कब चलेंगे?"
मुझसे पूछा गया ।
"अभी तो शाम है, कल चल सकूँगा ।"
मार्च 19, 2016 को आयशर ट्रक ठीक 4 :00 बजे अपराह्न में मेरे घर पर आकर खड़ा था । घंटे भर में ख़ास सामान उस पर लादकर हम चल पड़े । रात्रि साढ़े आठ बजे नए एकॉमोडेशन  पर था। 
नर्मदा तट पर केवटग्राम में जिसका नाम वैसे तो नावघाट खेड़ी है, लेकिन मैंने उसे केवटग्राम नाम दिया है, नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर बने दो गाँव हैं, --जिनमें से एक को खेड़ीघाट तथा दूसरे को नावघाट खेड़ी कहा जाता है।
नर्मदा तट पर ही 11 फ़रवरी वर्ष 1991 को कुछ समय करीब 6-7 माह के लिए जाना हुआ था। उस समय गर्मी अपने चरम पर थी। यहाँ भी यही स्थिति थी। जैसे 17 मार्च 2016 के दिन अचानक तय हुआ था कि यह स्थान छोड़ना है, उसी तरह 05 अगस्त 2016 तक केवटग्राम में रहते हुए तय हो गया था, यह स्थान छोड़ना है। 31 जुलाई 2016 के दिन बहुत से ऐसे कारण एकत्रित हो गए थे इसलिए मन बहुत उद्विग्न था। उन मित्र को फ़ोन कर बताया तो उन्होंने तुरन्त ही पास के एक हॉस्पीटल को फ़ोन कर एम्बुलेंस भिजवा दी। 05 अगस्त 2016 तक मुझे उस हॉस्पीटल में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
05 अगस्त 2016 से नवंबर 2019 तक उस स्थान पर मेरे रहने की व्यवस्था हो गई जहाँ मेरे वे मित्र रहते थे। नवंबर 2019 की किसी तारीख को यहाँ रहने आया। इस बीच अब तक कोरोना-काल के दौरान यहाँ रहा, और उसके बाद भी यहीं हूँ।
इस सब के बाद जो महत्वपूर्ण बात स्पष्ट हुई वह यह कि जीवन स्वयं ही हर किसी का भाग्य-विधाता होता है। जीवन का लक्ष्य क्या हो / है, इसे तय करना मनुष्य के वश में नहीं है, संकल्प का अर्थ है जीवन से युद्ध करना। सत्य की खोज, ईश्वर की प्राप्ति या आत्म-ज्ञान के लिए होनेवाली उत्कंठा को भी शायद संकल्प कहा जा सकता है, किन्तु यह प्रश्न तब भी अनुत्तरित रह जाता है कि क्या सत्य, आत्म-ज्ञान या ईश्वर हमसे बाहर की कोई ऐसी वस्तु है जो कहीं दूर, भविष्य में और अन्यत्र होती हो! संकल्प का सीधा अर्थ है : कोई लक्ष्य, आकांक्षा, जिसकी प्राप्ति के लिए किसी के द्वारा कोई प्रयत्न किया जाना आवश्यक होता है। किसी लक्ष्य का चुनाव जिसके द्वारा किया जाता है वह है बुद्धि या मन, जो सदैव ज्ञात की ही सीमा में किसी लक्ष्य की कल्पना कर सकता है। कल्पना, निश्चय, मन की गतिविधि है जो सत्य, आत्म-ज्ञान या ईश्वर के किसी रूप की कितनी भी परिपूर्ण कोई आदर्श प्रतिकृति रच भी ले, तो भी उसका साक्षात्कार हो सकने में बाधक ही होती है।
इसलिए जीवन जैसा भी है अद्भुत् है और उसका कोई लक्ष्य या उद्देश्य तय करना अपरिपक्वता का ही लक्षण है। सवाल केवल यही है कि क्या मन / बुद्धि इतने शान्त और सजग हो सकते हैं कि विचार की तरंग ही न उठे जिसे कि नियंत्रित किया जाए या 
जिसके उठने या न उठने से चित्त प्रभावित हो।
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