बुद्धि और काल / समय
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किसी पोस्ट में मैंने वह कथा लिखी है कि किस प्रकार एक बार बुद्धि और काल के बीच विवाद हुआ। बुद्धि का नाम ही परिधि और काल का नाम क्षितिज था, जो दोनों ही भगवान् वेदव्यास और उनकी पत्नी क्षिति की पुत्री और पुत्र थे।
दोनों भाई-बहन के बीच हमेशा ही स्वयं को बड़ा साबित करने की होड़ होती रहती थी।
ऐसा ही एक प्रसंग था, जिसमें बुद्धि का दावा था कि वह काल से बड़ी है और उसके जन्म के बाद ही काल का जन्म हुआ था, जबकि काल का तर्क था कि बुद्धि का जन्म जिस समय हुआ, वह समय बुद्धि के जन्म से पहले भी था। दोनों अपना विवाद लेकर पिता के पास जा पहुँचे तब पिता ने कहा - बेटा, तुम दोनों जुड़वाँ भाई बहन हो, एक यम है दूसरा यमुना। यम अचल और अटल है, जबकि यमुना जगत्, रूपी यह प्रवाह है।
इसलिए समय की सृष्टि कब हुई, यह प्रश्न ही मूलतः भ्रामक है, और बुद्धि में ही इसका जन्म होता है, जबकि दूसरी ओर, यह भी सत्य है कि बुद्धि भी भिन्न भिन्न समय पर भिन्न भिन्न प्रकार से प्रकट और विलुप्त होती रहती है।
प्रख्यात भौतिकशास्त्री अलबर्ट आइनस्टाइन का भी यही मत था कि "समय" मनुष्य के मन या बुद्धि का विभ्रम मात्र है :
"Time Is Illusion."
इस प्रकार से जगत् की सृष्टि (रचना / Creation) का प्रश्न भी असंगत है, जिस समय को हम और भौतिकशास्त्री मानते और उस मान्यता के आधार पर मापते और उसका मूल्यांकन करते हैं, जिसे शास्त्रों में अनादि और अनन्त कहा जाता है, वह समय इस रूप में अनादि है कि कभी उसका आरंभ हुआ ही नहीं था, -न कि इस रूप में कि उसका आरंभ सुदूर और किसी अत्यन्त प्राचीन समय पर हुआ था।
कल का पोस्ट लिखते समय उल्लिखित पोस्ट याद आया लेकिन वह कहाँ है, इसे खोजने का उत्साह न होने से खोज न सका।
समय के वैदिक, औपनिषदिक और पौराणिक वर्णन में समय / काल के दो रूपों को स्वीकार किया जाता है जो नित्य, सनातन और शाश्वत तथा चिरंतन होते हुए भी अचल, अटल तथा सतत प्रवाहशील भी है। इसी विचार (थीम) पर ईशावास्योपनिषद् को इस दृष्टि से समझने और स्पष्ट करने का प्रयास मेरे :
"Thus Spake The Rishi"
ब्लॉग में मैंने किया है।
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