विकास की क़ीमत!
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पिछले तीन वर्षों से भी पहले से इस स्थान पर रहने लगा हूँ।प्रकृति के सान्निध्य में। हाइवे से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव में।
हाइवे से गाँव तक जाने के दो रास्ते हैं। गाँव को बॉउंड्री वॉल से घेर कर वाल के किनारे से होकर दोनों रास्ते जाते हैं। जब तक आप गाँव में नहीं पहुँचते, आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि इस वॉल से बाहर कोई गाँव बसा होगा। वैसे गाँव स्वच्छ, और साफ-सुथरा है और आदर्श ग्राम की श्रेणी में शामिल है, पर जो दोनों रास्ते गाँव तक जाते हैं उनके बीच की विस्तृत भूमि पर दो तीन बड़े बड़े होटलों के बीच बिल्डर्स ने एक बड़े क्षेत्र पर अपना दफ्तर खोल रखा है, जिसके पास सुन्दर शिव मन्दिर है। मन्दिर तो छोटा ही है, किन्तु उसके आसपास की जगह काफी फैली हुई है, जिस पर सुरुचिपूर्ण तरीके से पेड़-पौधै लगाकर गॉर्डन या पार्क जैसा कुछ विकसित किया गया है। पार्क और बाउंड्री वॉल के बीच से होकर गाँव तक जानेवाले रास्ते पर एक बड़ी कॉलोनी निर्मित की गई है। बड़े बड़े प्लॉट्स पर उतने ही काफी बड़े आवास भी बने हैं, जिनके आसपास भी बगीचे बनाने के लिए काफी जगह है। ऐसी ही एक कॉटेज के पास स्विमिंग पूल भी है।
किन्तु इन तीन वर्षों में कोरोना के आने से पूरा क्षेत्र उजाड़ और वीरान हो चुका है। अनेक जर्जर हो रहे भवनों की कम्पाउन्ड-वॉल पर लगे लोहे के गेट भी देखरेख के अभाव में या तो टूट चुके हैं, या फिर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के द्वारा उखाड़ और तोड़ कर चोरी कर लिए गए हैं।
ऐसी ही एक कम्पाउन्ड-वॉल के भीतर एक सुन्दर सा ऊँचा वृक्ष है और बाहर भी ठीक उसके सामने ही एक और ऐसा ही वृक्ष सड़क किनारे पर है। बाहर का वृक्ष भी यद्यपि सुन्दर था, किन्तु रास्ते पर होने से उसे काट दिया गया। अब वह वृक्ष एक ठूँठ ही बनकर रह गया है, जिस पर एक खोखला सा प्रवेश-द्वार दिखाई देता है!
कोरोना-काल की समाप्ति पर अब उस क्षेत्र में फिर से धीरे धीरे सब कुछ व्यवस्थित किया जाने लगा है।
जो उजड़े जो उखड़े,
सो उखड़े, सो उजड़े!
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