February 10, 2023

तपस्विनि!

कविता / 16-01-2022

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करो तप, तपस्विनि!

मनीषा! मनस्विनि! 

जैसे सरिता कोई, 

नीर भरी, पयस्विनी!

क्षीण धारा सी प्रवाहित,

पथ कठोर, संकुचित, 

तोड़कर तटबन्ध बहती,

मृदु मञ्जुल शब्द करती, 

जलचर, नभचर तथा,

स्थलचर, जलथलचर,

तृषा सबकी ही बुझाती,

स्नेह-अमृत-वर्षा करती,

उपकार करती हर्षिणि!

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