February 15, 2023

दुनिया किसने बनाई?

मनुष्य, जीवन, ईश्वर, चेतना, संसार और जगत्

---------------------------------------------------

"दुनिया को किसने बनाया?" क्या यह थोड़ा सा अटपटा और निरर्थक प्रश्न नहीं है, क्योंकि फिर यह सवाल उठेगा कि जिस किसी ने भी दुनिया को बनाया होगा, उसे भी तो किसी न किसी ने बनाया ही होगा। तय है कि या तो दुनिया हमेशा से ही जो है, और जैसी है वह है, और तब किसी ने दुनिया को बनाया, यह सवाल तो उठता ही नहीं है। लेकिन अगर मान लिया जाए कि दुनिया को बनानेवाला कोई है तो जाहिर है कि उसे बनानेवाला कोई और कहीं नहीं है, बल्कि वह खुद हमेशा से ही जो है, और जैसा है, वह है, और किसी ने उसे बनाया, यह सवाल ही नहीं उठता। 

बहरहाल, सच्चाई कुछ भी हो, एक तो यह दुनिया है, जो मिट्टी, पानी, आग, हवा और आसमान जैसी चीज़ों से बनी है, तो एक और भी दुनिया है जिसमें हर कोई पैदा होता है, कुछ समय तक जीता है और फिर मर जाया करता है।

फिर एक और दुनिया है, जो मनुष्यों ने बनाई है, जिसे परिवार, समाज, जाति, वंश और सामाजिक व्यवस्था कहा जाता है। इस सामाजिक दुनिया को बनानेवाला वैसे तो कोई एक मनुष्य नहीं हो सकता, क्योंकि यह एक सामूहिक संरचना है, जो कि स्थान और परिस्थितियों के साथ बदलती रहती है। इसी संरचना को समाज कहा जाता है। समाज में रहनेवाले किसी भी मनुष्य को इसके तयशुदा नियमों और क़ायदे क़ानूनों के अनुसार चलना ही होता है। फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा, कि सभी मनुष्य इसे मिलकर ही बनाते हैं। फिर एक दुनिया वह होती है, जो हर मनुष्य के अपने मन में होती है, या जिसे वह दुनिया कहता है।

जब हम कहते हैं कि दुनिया को किसने बनाया तो हमें नहीं पता होता कि हम इनमें से कौन सी दुनिया के बनाए जाने, और उसे बनानेवाले के बारे में कह रहे हैं।

इसलिए यह कहना गलत न होगा कि हर मनुष्य अपनी दुनिया खुद ही बनाता है। और / क्योंकि उसे यह भी नहीं पता होता है, कि खुद उसे किसने बनाया! पर उसे यह तो पता हो सकता है कि उसके शरीर को उसके माता-पिता ने जन्म दिया है, लेकिन फिर सवाल उठता है कि माता-पिता को किसने जन्म दिया, तो वह सवाल भी किसी पूर्वज तक जाकर समाप्त हो जाता है। शायद विज्ञान कभी इस बारे में जान सकेगा कि इस धरती पर जीवन कब प्रारंभ हुआ होगा। तब वह यह प्रश्न नहीं पूछ सकेगा कि धरती पर जीवन कहाँ से, किस स्थान, तारे और दूसरे किसी ग्रह आदि से आया, क्योंकि जीवन कहीं से भी क्यों न आया हो, अगर वहाँ से ही प्रारंभ हो सकता था, तो ऐसे ही धरती से भी तो हो सकता है!

फिर सवाल यह भी है, कि क्या जीवन को किसी ने बनाया, या वह भी हमेशा से ही जो है, और जैसा है वैसा ही है, और केवल परिस्थितियों के अनुकूल होने पर ही अनेक और असंख्य प्रकार के अनगिनत प्राणियों का रूप लेकर अभिव्यक्त होता है, प्रकट तथा विलुप्त होता रहता है। और ऐसे ही असंख्य प्राणियों में भी प्रत्येक के साथ चेतना अपरिहार्यतः संबद्ध होती है, जिसमें वह प्राणी अपने जन्म के समय तो अपने पृथक होने की भावना से रहित होता है किन्तु समय बीतते बीतते उसमें यह भावना जन्म लेती है, और फिर वह शरीर को 'मैं' समझने लगता है। यह भी एक रोचक सच्चाई है कि नींद या बेहोश / अचेत होने की स्थिति में उसका शरीर मर नहीं जाता, केवल कुछ समय के लिए संसार से उसका संपर्क टूट जाया करता है। और नींद से जागने के बाद भी वह अपनी स्मृति की सहायता से अपने "मैं" होने की भावना को पुनः समायोजित / पुनर्जीवित कर स्वयं को निरंतर विद्यमान व्यक्ति मान लेता है। और चूँकि स्मृति भी जानकारी मात्र है जो सतत बनती और मिटती रहती है, अतः स्मृति भी वह 'स्वयं' तो नहीं होता। स्मृति के माध्यम से ही एक आभासी "मैं" निरंतर बनता और बदलता, तथा मिटता रहता है।

फिर, यह प्रश्न, "क्या उसे किसी ने बनाया है?" क्या असंगत और त्रुटिपूर्ण ही नहीं है?

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।।

इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।२२।।

(श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १०)

इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना धृतिः।।

एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्।।६।।

(श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय १३)

क्या यह चेतना (consciousness) ही जीवन का ही पर्याय नहीं है? क्या यह मनुष्यमात्र और जिस किसी ईश्वर ने दुनिया को बनाया है, उस ईश्वर में विद्यमान एकमेव उभयनिष्ठ सत्य ही  नहीं है?

***

No comments:

Post a Comment