February 22, 2023

पानी केरा बुदबुदा!

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।

देखत ही छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात।।

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मानस (= मन) की जाति (= जन्म), सुबह दिखलाई पड़नेवाले तारे की तरह अत्यन्त अल्पकालिक होता है। जैसे सुबह दिखाई पड़नेवाला तारा देखते देखते आँखों से ओझल हो जाता है और फिर दिखलाई नहीं देता, मन भी इसी प्रकार की वस्तु है जिस पर दृष्टि डालते ही लुप्त-प्राय हो जाता है, कहीं नहीं दिखलाई देता । दूसरा और अधिक प्रचलित अर्थ यह है कि मानस अर्थात् मनुष्य (का जीवन) भी सुबह के तारे जैसा ही क्षणिक है (मनुष्य को इसकी सत्यता का पता तो अपना अंतिम समय आने पर ही होता है। तब तक वह अनेक सपनों में इतना अधिक डूबा रहता है कि मृत्यु की कल्पना तक नहीं कर पाता।) इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि जैसे पानी में उठनेवाला कोई बुलबुला भीतर से रिक्त होता है, हर मनुष्य भी अपने आपमें सतत एक रिक्तता का अनुभव करता है, और उस रिक्तता को भरने की कोशिश में और उसे भर पाने की आशा में वह सदैव कुछ न कुछ करता ही रहता है। और कुछ नहीं, तो सपनों से ही उस रिक्तता को भर लेने का प्रयास करता है। 

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