February 18, 2023

महाशिवरात्रि पर,

अक्षरसमाम्नाय और संस्कृत का भाषावैभव

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आज बहुत से जरूरी काम करने थे। कल शाम से ही बिजली गुल थी। सुबह बिजली आई तो सबसे पहले मोबाइल की बैटरी चार्ज की। रूटीन काम निपटाए। खाना बनाया, दोपहर एक बजे फुरसत मिली तो डेढ़ घंटे सोया। चाय पी। कुछ करने का मन नहीं था, तो यूँ ही कुछ न करते हुए कुर्सी पर बैठा रहा। पास के मन्दिर में अखण्ड रामायण (रामरचितमानस / रामचरितमानस) का पाठ चल रहा था, सुनता रहा। चूँकि वॉल्यूम ऊँचा था, ढोल- नगाड़े भी भज रहे थे तो शब्द साफ नहीं सुनाई दे रहे थे। केवल स्वरों को ध्यानपूर्वक सुना तो पता चला राग यमन कल्याण के स्वरों में कुछ गाया जा रहा था। डेढ़ घंटे बाद जब गायन समाप्त हुआ तो रामचरितमानस का पाठ फिर सुनाई देने लगा। कमरे में वॉक करते हुए टेबल पर रखी स्तोत्ररत्नावलि पर ध्यान गया तो शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र पढ़ा। गायन के समाप्त होने पर पुनः एक बार रामचरितमानस का पाठ सुनाई देने लगा। इससे अनुमान लगाया कि गायन और पाठ साथ साथ चल रहे थे। न तो बाहर जाने का मन हो रहा था, न घर में बैठे रहने का। फिर मन बदल गया, सोचा कुछ समय बाहर टहल लिया जाए। लौटते हुए कुछ पड़ोसी सपरिवार कहीं जाते दिखाई दिए। पति-पत्नी के साथ उनके तीन बच्चे। बड़ी लड़की 12 वर्ष की, उससे छोटा उसका भाई 10 वर्ष का और सबसे छोटी उनकी बहन 5 वर्ष की उम्र के हैं। जाते जाते बड़ी लड़की उत्साहपूर्वक बोली :

"भोलेबाबा की शादी में जा रहे हैं!"

आज भोलेबाबा जगत्पिता शिव और माता भवानी जगज्जननी पार्वती का विवाहोत्सव जो है!

घर लौटते हुए याद आया सूरी नागम्मा लिखित :

"रमणाश्रम के पत्र" /

"Letters from Sri Ramanasramam"

का वह प्रसंग जब तिरु-अण्णामलै में रुद्र- दर्शन के दिन भगवान् अरुणाचल की पालकी श्री रमणाश्रम के सामने से गुजरी तो श्री रमण ने हाथ जोड़कर सिर झुकाया और बोले :

अप्पक्कु पिळ्ळै अडक्कु / அப்பக்கு பிள்ளை அடக்கு ।

अर्थात् पुत्र ने पिता के दर्शन किए। 

मुझे नहीं पता कि उपरोक्त तमिऴ और नागरी लिपि में लिखा शुद्ध है या अशुद्ध है क्योंकि जब मैंने उस पुस्तक को खोजने का प्रयास किया तो मुझे वह नहीं मिली। फिर मैंने माइक्रोसॉफ्ट के ट्रान्सलेटर ऐप से चेक किया तो भी मुझे सफलता नहीं मिली फिर उस ऐप में अपने தமிழ் भाषा के ज्ञान को परखने जानने के लिए कुछ खोजा तो आश्चर्य हुआ।

Excellent, Wonderful, Splendid,

इनका तमिऴ अनुवाद अद्भुतम् , आश्चर्यम् जैसे संस्कृत शब्दों के सजात / सज्ञात / cognates थे तो दूसरे भी अनेक शब्द ऐसे ही जान पड़े। तमिऴ लिपि नागरी से वैसे ही मिलती जुगती है, जैसे कि पूरे भारत की अन्य भाषाओं की लिपियाँ। हाँ तमिऴ लिपि का स्वरविन्यास (phonetic protocol) कुछ भिन्न है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि तमिऴ भाषा संस्कृत से भी अधिक प्राचीन है। वैसे इस तथ्य पर ध्यान दें कि तमिऴ को विभिन्न प्रयोजनों के लिए ब्राह्मी तथा ग्रन्थलिपि में भी लिखा जाता है, तो स्पष्ट हो जाएगा कि यह अनुमान भी संस्कृत और भारतीय भाषाओं से द्वेष रखनेवाले विदेशियों के ही द्वारा 'रचा' गया है ताकि तमाम भारतीय भाषाओं का एक ही स्रोत होने की सच्चाई पर पर्दा डाल दिया जा सके और जनमानस में संस्कृत के प्रति विरोध की भावना जागृत की जा सके।

निष्कर्ष यही कि अगर हम अधिक से अधिक भाषाएँ सीखें तो हमें वास्तविकता क्या है, इसका पता चलेगा और हम अपनी भाषा, संस्कृति और 'धर्म' को अच्छी तरह जान सकेंगे। अभी तो हमसे कहीं अधिक अच्छी तरह तो इसे वे विदेशी ही जानते हैं, जो कि हमारी कमज़ोरी का लाभ उठाकर हमें हानि पहुँचाना चाहते हैं।

संस्कृत भाषा के व्याकरण का आधार तो वही अक्षरसमाम्नाय है जिसका उपदेश स्वयं भगवान् शिव ने ही सनक और पाणिनी आदि ऋषियों को दिया था! 

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