February 27, 2023

यह सिलसिला!

कविता / 27-02-2023

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सिलसिला कब ख़त्म होगा क्या पता! 

तुझको अगर मालूम हो तो यह तू ही बता!

तूने किया था या किया था शुरू मैंने,

या कि दोनों ने ही की थी यह ख़ता!

क्या ज़रूरी है कि रहें खींचते ही हम इसे, 

क्या ज़रूरी है कि रहें झेलते ही यह सज़ा!

क्यों कोई इलज़ाम तुम पर मैं लगाऊँ, 

क्यों करो इलज़ाम मुझ पर तुम आयद, 

क्यों न भूल जाएँ हम मिले भी थे कभी,

क्यों न चुन लें राह हम, और अपना रास्ता!

यूँ ही करते रहें क्या, दोस्ती-दुश्मनी का खेल,

यूँ ही करते रहें रोज मेल सुलह या अनमेल,

कैसे मगर यह ख़त्म होगा, मुझे तो मालूम नहीं, 

तुझको मगर मालूम हो तो यह तू ही बता!

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