February 26, 2022

धूलि-वन्दन

होली-उत्सव

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कविता 

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धूल-धूसरित चरण तुम्हारे,

मेरे मन को भाते हैं,

चरण-धूलि सिर पर रखकर,

भक्त-हृदय हरषाते हैं

चरण-धूलि का अंगराग,

पृथ्वी भी धारण करती है, 

जीवों, वृक्षों का स्नेह-सहित,

पालन-पोषण करती है!

गोधूलि वेला हो संध्या को, 

सूर्योदय में भी प्रतिदिन ही,

वायु में बिखरी स्वर्ण-कणों,

रत्नों जैसी जगमगाती है?

मन खोया-खोया रहता है, 

हृदय भी पुलकित विस्मित सा,

कण-कण में प्रभु कृपा तेरी, 

हर मन को हरषाती है।

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