कविता : 24-02-2022
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हर बार ही नया होता है,
जब भी दर्द बयाँ होता है,
लेकिन यह मालूम नहीं,
दर्द किसे, कहाँ होता है!
भीतर होता है, या बाहर,
यहाँ-वहाँ या कहीं नहीं,
दर्द होता है, अहसास क्या,
अहसास, क्या दर्द होता है!
किसी व्यतीत की पीड़ा,
किसी भविष्य की आशंका,
या कि, वर्तमान का ही दंश,
दर्द यूँ, ऐसा भी, होता है!
धुन्ध जैसा बिखरता है,
रौशनी जैसा निखरता है,
अँधेरे जैसा फैलता हुआ,
कौंध के जैसी प्रखरता है!
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