February 05, 2022

जब सब कुछ है!

कविता 05-01-2022

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जब सब कुछ होगा, 

तो सुख भी तो होगा ही! 

जब सब कुछ होगा, 

तो दुःख भी तो होगा ही! 

जब सब कुछ होगा, 

तो सुख-दुःख भी होगा ही! 

जब सुख-दुःख होगा,

तो बेचैनी भी होगी ही!

फिर क्यों यह मन कहता है, 

यह बेचैनी क्यों होती है! 

फिर क्यों यह मन सोचता है, 

यह बेचैनी क्यों होती है! 

यह सुख किसको होता है?

यह दुःख किसको होता है?

यह सुख-दुःख किसको होता है? 

यह सुख-दुःख जिसको होता है, 

जब तक वह है तब तक तो,

सुख-दुःख, बेचैनी, होगी ही!

जब तक ऐसा, कोई जो भी है,

उसको बेचैनी होगी ही! 

फिर वह कोई भी, जो भी है, 

कैसे बेचैनी दूर करे? 

क्या वह खुद ही फिर मिट जाए, 

क्या तब ही उसको चैन मिले! 

लेकिन यदि वह ही मिट जाए,

तो फिर कैसे 'वह' रह पाये!

कैसे 'वह' तब फिर यह जाने,

बेचैनी फिर कैसे जाये!

***


तो सवाल यह है :

जो मन सुखी-दुःखी होता है,

जो "मैं" सुखी-दुःखी होता है, 

जो मन "मैं" कहता है,

जो "मैं" मन को जानता है,

क्या "मैं" ही, 'वह' मन है? 

क्या मन ही, 'वह' मैं है? 

फिर किसको कौन मिटाता है,

कौन बचा रह जाता है?

***





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