February 05, 2022

भक्ति का भेद

वसंत का आगमन

---------©--------- 

बृजभूमि पर वसंत का आगमन हो चुका था। संध्या में गौएँ वन में चरकर गाँव की ओर लौट रही थीं। चन्द्रमा अभी उदित नहीं हुआ था। अभी दो घड़ी की देर थी।

दो तीन घड़ी के बाद चन्द्रमा जब उदित हुआ तब तक ग्वाल- बाल घर से शाम का भोजन कर रास नृत्य के लिए एकत्र हुए।

उन ग्वाल-बालों के बीच एक ऐसा भी बालक था जो नृत्य तो कम, उछल-कूद ही अधिक करता था। और दूसरे ग्वाल-बालों को उसकी उछल-कूद पर कोई आपत्ति भी नहीं होती थी। 

एक दिन उसके एक साथी ने उससे पूछा :

"तुम नृत्य कम और उछल-कूद अधिक क्यों करते हो?"

उसने कहा : 

"मैं हनुमान का भक्त हूँ, इसलिए नृत्य तो अधिक नहीं, उछल-कूद ही अधिक जानता हूँ।"

"तो तुम रासबिहारी कृष्ण की रासमंडली में सम्मिलित ही क्यों होते हो?"

"अरे! तुम्हें नहीं पता कि भगवान् श्रीराम ही तो इस द्वापर युग में भगवान् श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए हैं, और हनुमानजी तो भगवान् श्रीराम के ही परम भक्त हैं।"

"तो"

"यही कि जहाँ श्रीराम होते हैं, वहाँ हनुमानजी भी होते ही हैं। इसीलिए मुझे नृत्य नहीं आता तो भी मैं अपने आपको रास-नृत्य में सम्मिलित होने से नहीं रोक पाता!"

***

No comments:

Post a Comment