कविता / 21-02-2022
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नींद आती है, ख्वाब आते हैं,
चिट्ठियों के जवाब आते हैं!
किसी मुफलिस की झोंपड़ी में,
जैसे कोई नवाब आते हैं!
हिफाज़त, देखरेख, कीजिए,
काँटों के पीछे गुलाब आते हैं!
हाँ निगाहें तो हैं क़ातिल उनकी,
मगर अंदाजो-आदाब आते हैं!
बेख़याली में भी खयाल होता है,
रंजो-ग़म के हिसाब आते हैं!
बैठे-बैठे भी ऐसे ही अकसर,
खयाल उसको, नायाब आते हैं!
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