सूक्ति :
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
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यह मेरा है या यह पराया है, इस प्रकार का आकलन संकीर्ण बुद्धि से युक्त मनुष्य ही करते हैं। उदार-हृदय से प्रेरित आचरण करनेवाले मनुष्यों के लिए तो पूरी पृथ्वी मानों एक ही परिवार होता है।
महावाक्य :
अयमात्मा ब्रह्म।।
'अयं' (पद) सर्वनाम अर्थात् 'यह' शब्द सूक्त में किसी सांसारिक या भौतिक वस्तु के लिए प्रयुक्त है, और महावाक्य में आत्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है। सूक्त में जिसे परिवार कहा गया है, उसे ही महावाक्य में निज आत्मा कहा गया है।
जब तक अयं का विचार है तब तक इदं (यह) भी होगा ही, और जब तक इदं (यह) है, तब तक अहंकार (मैं) भी होगा ही।
इस प्रकार जिस 'मैं' का निर्देश सूक्त में 'निज' (मेरा) के सन्दर्भ में किया गया है, वह उस 'मैं' से भिन्न है जिसका महावाक्य में निर्देश है। जिस 'मैं' का निर्देश महावाक्य में ब्रह्म कहकर किया गया है, उसका ही निर्देश पुनः 'अहं ब्रह्मास्मि' महावाक्य में ब्रह्म के अर्थ में है।
परो या परः के भी दो तात्पर्य हो सकते हैं :
अन्य अर्थात् दूसरा,
परम अर्थात् आत्यन्तिक, पूर्ण, अंतिम,
परः पुनः ब्रह्म, आत्मा या परमात्मा के अर्थ में भी ग्रहण किया जा सकता है।
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