November 01, 2021

वाटिका

कविता : 01-11-2021

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नितव्यर्थ / net-worth.

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इस वन में उपवन नहीं,

और न कोई वाटिका, 

और न है वटवृक्ष ही,

न ताड़, न कोई ताटका!

एक नहीं, वटवृक्ष तो, 

पंचवटी कैसे होगी,

कैसे आएँगे राम यहाँ,

कैसे रामायण होगी!

कैसे होगा सीता-हरण, 

कैसे आएगी शूर्पनखा,

नाक-कान कैसे कटें,

दशमुख कैसे हारेगा! 

इस वन में गुंजित यह नाद, 

क्या कभी बनेगा श्रुतिसंवाद,

या फिर बस रव-कोलाहल,

सिर्फ उन्माद, कोरा अवसाद!

क्या यह होगा व्रजभूमि,

गूँजे जिस पर वंशी का नाद,

या असुरों की युद्धभूमि,

जिस पर इंद्र का वज्रपात!

इस वन में कोई उपवन नहीं,

और न कोई वाटिका!

कैसे होगी रामायण,

या फिर कोई नाटिका!

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