वेदान्त सार
----------------
एक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है।
यहाँ बस उसका स्मरण हुआ अतः कृतज्ञता-ज्ञापन करने की दृष्टि से इसका उल्लेख करना उचित लगा।
उपरोक्त ग्रन्थ अवश्य ही पठनीय है और वेदान्त-निर्देशित सत्य की ओर हमारा(!) ध्यान आकर्षित भी करता है।
किन्तु वेदान्त-निर्देशित उस सत्य का साक्षात्कार करने का एक और भी विकल्प हो सकता है।
वेदान्त-शास्त्र में जिसे 'अहं-पदार्थ' कहा जाता है, वह 'अहंकार' चार स्तम्भों पर खड़ा एक ऐसा भवन है जिसके आधार रूपी ये चारों स्तंभ कल्पना की ही उत्पत्ति होते हैं । संक्षेप में :
कर्तृत्व-बुद्धि, भोक्तृत्व-बुद्धि, स्वामित्व-बुद्धि और ज्ञातृत्व-बुद्धि ।
चूँकि जिसे 'मन' कहा जाता है वह अहं-पदार्थ के ही उन चार रूपों की समष्टि भी है जिसे अन्तःकरण भी कहा जाता है, अतः यह या कोई भी दूसरी कल्पना इस समष्टि मन में ही उत्पन्न होती है न कि मेरे, आपके अथवा किसी और के मन में, जैसा कि इन चार प्रकार की बुद्धियों से प्रेरित और भ्रमित हुआ अज्ञानी मान बैठता है।
कर्तृत्व-बुद्धि के होने का तात्पर्य गीता के अध्याय १८ के निम्नलिखित श्लोकों के माध्यम से भी समझा जा सकता है :
अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम् ।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा देवं चैवात्र पञ्चमम् ।।१४।।
तात्पर्य यह कि किसी भी कर्म के संदर्भ में कर्ता की मान्यता और स्वयं को उस मान्यता में बाँध कर स्वतंत्र रूप से एकमात्र कर्ता मानने की बुद्धि ही वह कर्तृत्व-बुद्धि है जो अहंकार का प्रथम (काल्पनिक) स्तंभ है।
भोक्तृत्व-बुद्धि होने का तात्पर्य / परिणाम है इस कल्पना से मोहित-बुद्धि हो जाना, कि उपरोक्त वर्णित स्वतंत्र-कर्ता अर्थात् 'मैं', सुखी-दुःखी, भयभीत, चिंतित, भ्रमित, व्याकुल, श्रेष्ठ, या निकृष्ट, सफल या असफल आदि है । अर्थात् 'मैं' को कर्म और उसके फल का भोक्ता मान लेना ।
स्वामित्व-बुद्धि होने का तात्पर्य / परिणाम है इस कल्पना से बुद्धि का मोहित हो जाना, कि उपरोक्त वर्णित स्वतंत्र-कर्ता जो कि भोक्ता है, किसी भौतिक या काल्पनिक वस्तु का स्वामी है ।
और इन तीनों बुद्धियों में व्याप्त और प्रच्छन्न चौथी बुद्धि यह है कि यह कर्ता-भोक्ता-स्वामी, 'मैं' कुछ न कुछ जानता है । जबकि सत्य वस्तुतः इन चारों से विलक्षण है।
'अहं-पदार्थ' जो अहं-पद आत्मा की ही क्षणिक अभिव्यक्ति है, ही कर्ता, भोक्ता, स्वामी तथा ज्ञाता के रूप में बुद्धि का आश्रय लेकर अपनी कल्पित सत्यता बनाए रखता है।
***
No comments:
Post a Comment