November 02, 2021

अपनी अपनी दुनिया!

कविता : 02-11-2021

चुपके-चुपके

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हर रोज धीरे धीरे,

मौसम बदल रहा है,

हर रोज धीरे धीरे,

सब कुछ बदल रहा है! 

लगने लगी है धूप, 

सुबह की सुहानी!

सैर हुई लम्बी,

यह शाम की कहानी!

बदलें न हम तो क्या है, 

तुम तो बदल रहे हो, 

या यूँ कहो कि जैसे,

समय ही बदल रहा है! 

कितना सुकून है जब,

पंछी भी चुप हैं जैसे,

तार पर क़तार में,

बैठे हैं शान्त ऐसे!

है ये तिलिस्म ऐसा,

राज़ इस संगत का,

टूटे न कहीं जादू, 

शाम की रंगत का! 

शाम की इस वेला में, 

बच्चे भी खेलते हैं,

रंगों से रच रंगोली,

ज्योति बिखेरते हैं!

कितनी लगन है देखो, 

कितनी उमंग भी है,

वो भूल ही गए हैं, 

वहाँ पतंग भी है! 

अब हो गई रंगोली,

तो पतंग नजर आई,

उड़ रही है, अब वो भी,

लेकर उठी अँगड़ाई!

क्या चीज़ है ये बचपन,

उन आँखों में पल रहा है,

क्या चीज़ है वक्त यह,

हर पल बदल रहा है!

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