नये नोट्स, नये पोस्ट्स
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इस ब्लॉग में, स्वाध्याय ब्लॉग में, और vinaykvaidya blog में कुछ समय से ऐसा कुछ लिख रहा हूँ जिस पर शायद मतभेद हो सकते हैं।
जैसे क्रिप्टोकरेंसी पर, या अब्राहम एकॉर्ड्स पर।
आश्चर्य की बात है कि यद्यपि इन दोनों पोस्ट्स को मैंने जल्दी से जल्दी डिस्कार्ड कर दिया था किन्तु इनका इम्पैक्ट इसके बाद भी दिखलाई पड़ा।
किसी बड़े अर्थशास्त्री के अनुसार अधिकांश भारतीय क्रिप्टो-करेंसियाँ जल्दी ही समाप्त (perish) हो जाएँगी।
मुझे न तो अर्थशास्त्र का ज्ञान है, और न ही क्रिप्टोकरेंसी के बारे में कुछ जानता हूँ, फिर भी जब मेरे इस अनुमान की पुष्टि किसी बड़े अर्थशास्त्री ने की है, तो मुझे अनुभव हुआ कि मैं इस विषय का सही आकलन कर सकता हूँ। दावा तो क़तई नहीं है।
दूसरा विषय था अब्राहम एकॉर्ड्स का, तो इस बारे में जो पोस्ट मैंने लिखा था, वह 'ईश्वर' के होने के, या न होने के, प्रमाण के बारे में नहीं, बल्कि इस संबंध में था, कि यद्यपि ईश्वर कभी भी ज्ञान का विषय नहीं हो सकता, किन्तु 'ईश्वर' के ऐसे कुछ लक्षण (चिन्ह, marks, और signs) अवश्य हैं, जिन्हें अपने भीतर ही खोजकर मनुष्य ऐसे किसी 'ईश्वर' के अस्तित्वमान होने के बारे में सच्चाई का पता जरूर लगा सकता है ।
किसी पाठक ने मेरे इस पोस्ट की प्रतिक्रिया में UGoD का एक वीडियो मेरे मेल आई-डी पर भेज दिया। मैंने पढ़े या देखे बिना ही इसे डिलीट कर दिया। क्योंकि मुझे इस विषय में किसी से कोई भी चर्चा या वाद-विवाद नहीं करना है।
ईश्वर संबंधी अपने पोस्ट में मैंने केवल यही कहा था कि सनातन धर्म के अथर्वशीर्ष नामक परंपरा के ग्रन्थों में, जिसे 'ईश्वर' कहा जाता है, उस परम दिव्य सत्ता को, उसके पाँच प्रमुख लक्षणों के माध्यम से अवश्य ही अपने ही भीतर नित्य विद्यमान सत्य के रूप में जाना जा सकता है।
यहाँ पुनः यही कहना चाहूँगा कि शिव-अथर्वशीर्ष में, और इसी प्रकार से देवी-अथर्वशीर्ष इन दोनों ही ग्रन्थों में, उस दिव्य सत्ता ने देवताओं द्वारा पूछे जाने पर स्वयं का परिचय देते हुए :
"मैं ब्रह्म हूँ और मैं ही अब्रह्म भी हूँ।"
यही कहा था।
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