सुबह नींद खुली तो 5:10 बजे थे।
गूगल में वेदर देखा तो पता चला यहाँ बादल रहेंगे, तापमान अनुकूल रहेगा। हवा में नमी भी कम रहेगी। शाम 5:00 बजे बारिश होगी।
दोपहर 2:30 से 4:10 तक बहुत अच्छी नींद आई। उठा तो शरीर में ताज़गी और हल्कापन था। शाम के लिए खाना बना कर रख दिया। अब फ्री हूँ। बाहर बादल हैं रास्ते साफ-सुथरे। बच्चे खेल रहे हैं। कुछ वाहन कभी कभी आ जा रहे हैं। कुल मिलाकर बस शान्ति है। वाह! सूखा मौसम मुझे बहुत अच्छा लगता है।
पानी बहुत बरसे, ठंड या गर्मी बहुत हो तो भी कोई बात नहीं। आज ऐसा ही एक दिन था। शाम को ठीक 4ः00 बजे बारिश होने लगी। बारिश की आवाज से ही तो नींद खुली थी।
मोबाइल पर कुछ समाचार देखता रहा। लैपटॉप कई दिनों से निष्क्रिय है। न कुछ करने की जरूरत है, न मन, न बाध्यता ।
शरीर और शरीर का स्वामी अपने अपने क्षेत्र में जीते हैं। इसे ही शायद गीता के अध्याय १३ में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ कहा गया है।
शरीर को जाननेवाले को मन कहा जाता है। लेकिन मन शरीर को कितना और कहाँ (तक) जानता है। शरीर मन को जानता है या नहीं, इस बारे में भी निश्चयपूर्वक क्या कहा जा सकता है!
मन को कौन जानता है? कितना और कहाँ (तक)!
क्या मन को जाननेवाला वाकई कोई दूसरा मन होता है?
यदि मन को क्षेत्र समझा / माना जाए, तो मन को इस प्रकार से जानने वाले को इस क्षेत्र का क्षेत्रज्ञ कहा जाए!
क्या यह सारी उधेड़बुन मन ही नहीं है?
फिर वह क्या / कौन है जो कभी तो मन को 'अपना' कहता है, और कभी अपने को मन!
क्या इसे चेतना कह सकते हैं?
गीता अध्याय १० में संकेत है :
"... ... भूतानामस्मि चेतना ।।२२।।"
क्या मन ही यह चेतना है!
क्या यह चेतना ही मन है?
क्या मन चेतना का ही एक अंश है?
मन चेतना को जानता है या चेतना ही मन को जानती है!
स्पष्ट है कि यहाँ हमें "जानने" का क्या तात्पर्य है इस पर ध्यान देना होगा । अब यहाँ एक और नया तत्व ध्यान भी आ गया है!
यह 'ध्यान' क्या है?
यह मन की गतिविधि है या चेतना की अभिव्यक्ति और लक्षण है? क्या मन स्वयं ही चेतना की गतिविधि और लक्षण भी नहीं है?
जैसे मन को 'अपना' या 'मेरा' कहा जाता है, क्या उसी तरह से ध्यान को भी 'मेरा' नहीं कहा / माना जाता?
फिर वह क्या / कौन है जो ध्यान को 'मेरा' कहता है!
और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या ध्यान को 'किया जाता है'! या ध्यान 'दिया जाता है'!
फिर यह प्रश्न भी उठता है कि ध्यान कौन करता / देता है!
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