अ और क्ष, त्र, ज्ञ
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कभी कभी उसे लगता था कि क्या अ को क्ष, त्र, ज्ञ से घृणा है?
या, क्या क्ष, त्र, ज्ञ को अ से?
क्या घृणा संबंध का ही एक रूप नहीं होता?
यदि अ, किसी क्ष, त्र और ज्ञ से नितान्त अनभिज्ञ, अपरिचित हो तो क्या उसे उनसे घृणा या वैर हो सकता है?
अब, यदि क्ष, त्र तथा ज्ञ तीनों ही, एक ही उद्गम से उत्पन्न तीन प्रकार की स्थितियाँ हों, और इसलिए उन तीनों स्थितियों के बीच कुछ आभासी भिन्नताएँ तो दिखलाई देती हों, किन्तु कोई स्वरूपगत भिन्नता न हो, और इसलिए क्ष, त्र और ज्ञ के बीच टकराहटें हों, परस्पर वैमनस्य हों, तथा वे स्थितियाँ तो परस्पर एक से दूसरी में परिवर्तनीय हो, और अ उनमें से किसी में भी न परिवर्तनीय, स्वतंत्र और पूर्ण, सर्वथा अपरिवर्तनीय स्थिति हो, तो क्या अ की तुलना क्ष, त्र तथा ज्ञ से किया जाना न्यायोचित होगा?
क्या अ को धर्म तथा क्ष, त्र और ज्ञ को परंपरा नहीं कहा जा सकता? क्या धर्म और परंपरा परस्पर परिवर्तनीय हैं?
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