November 20, 2021

यह सब क्या है?

पुनश्च 

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कविता / 20-11-2021

य एषः सुप्तेषु जागर्ति 

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यह सब क्या है, 

जो मन में उमड़ता-घुमड़ता है! 

यह मन क्या है,

जो चेतना में उमड़ता-घुमड़ता है! 

यह चेतना क्या है, 

जो मुझमें उमड़ती-घुमड़ती है! 

यह मैं क्या है,

जो चेतना में उमड़ता-घुमड़ता है! 

यह सब क्या है!

जो जागृति में उमड़ता-घुमड़ता है, 

यह जागृति क्या है, 

जो स्वप्न में उमड़ती-घुमड़ती है! 

यह स्वप्न क्या है, 

जो सुषुप्ति में उमड़ता-घुमड़ता है!

यह सुषुप्ति क्या है,

जो प्रमाद में उमड़ती-घुमड़ती है!

यह प्रमाद क्या है,

जो काल में उमड़ता-घुमड़ता है!

यह काल क्या है,

जो अज्ञान में उमड़ता-घुमड़ता है!

यह अज्ञान क्या है, 

जो निजता में उमड़ता-घुमड़ता है!

यह निजता क्या है!

यह सब क्या है!

***

सुबह जब मैंने पोस्ट लिखा था, भूल से, 'निजता' के स्थान पर 'नियति' शब्द छप गया था। यह कविता किसी को सुनाई, तो इस भूल पर ध्यान गया। और, अर्थ का अनर्थ हो गया! प्रमाद मृत्यु ही तो है!

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