व्यावहारिक यथार्थ
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आज अचानक एक नई दृष्टि से देखा / सोचा तो अनुभव किया, कि किसी से पैसे, धर्म और अध्यात्म के बारे में बातें न करना ही बेहतर है । खेल, कला, फ़िल्मों, राजनीति, तथा साहित्य आदि के बारे में बातें करते हुए समय अच्छा कट जाता है, और व्यर्थ की बातों से बचा भी जा सकता है ।
हाँ, इसमें यह जरूर है कि जो लोग संस्कृति, समाज, देश, धर्म / मजहब / भाषा / रिलीजन या किसी राजनीतिक वाद के कट्टर पक्षधर हैं उन्हें शायद यह बात गवारा न हो!
एक और अच्छा तरीका है, - अपने मोबाइल पर व्यस्त रहना !
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