विचार का वर्तमान
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इस श्रृंखला में दो पोस्ट क्रमशः :
अतीत का विचार और विचार का अतीत,
एवं,
भविष्य का विचार और विचार का भविष्य
शीर्षक से लिखे जा चुके हैं।
इसी क्रम में यह तीसरा और अंतिम पोस्ट है।
विचार एक अद्भुत् प्रक्रिया तथा वस्तु है जो एक सिरे पर यद्यपि बुद्धिग्राह्य और इसलिए बुद्धिगम्य है, तो दूसरे सिरे पर एक शुद्ध भौतिक इन्द्रियग्राह्य और इसलिए इन्द्रियगम्य है।
केवल बुद्धि और इन्द्रिय ही नहीं, विचार भावग्राह्य, भावगम्य भी है। संक्षेप में कहें तो विचार संवेदनगम्य, अर्थात् संवेदनागम्य है। पुस्तक या कागज पर लिखा विचार जहाँ उस लिपि से अनभिज्ञ व्यक्ति के लिए अर्थरहित चिह्नों का क्रम है, वहीं वाणी से व्यक्त विचार उसी / इसी वर्तमान क्षण में सक्रिय सार्थक तथा प्रयोजन को इंगित करनेवाली अभिव्यक्ति है।
स्पष्ट है कि इस प्रकार का कोई विचार किसी न किसी भाषा पर आधारित होता है।
विचार की व्युत्पत्ति विच् (विविच्) धातु से है जिसे मुख्य रूप से पूछने, खोज करने, जिज्ञासा करने के अर्थ में प्रयोग किया जाता है, किन्तु पर्याय से (imperatively) या परोक्षतः, शाब्दिक या भाषागत और व्यावहारिक रूप से किसी तात्पर्य-विशेष को इंगित करने के लिए भी किया जाता है । यही 'विचार' का रूढ प्रयोग है।
जब कोई 'मेरा विचार' कहता है, तो तात्पर्य यह होता है कि इस विचार का उद्भव एक शब्द-समूह की तरह उसके मन / उसकी चेतना में हुआ है जिसे उसने वाणी से प्रकट किया।
जब कोई 'मैं सोचता हूँ' कहता है तो तात्पर्य यह होता है कि यह विचार उसे स्वीकार्य है।
यही विचार अन्य किसी समय पर उसे अस्वीकार्य भी हो सकता है। तात्पर्य यह, कि वह स्वयं को कभी तो विचार से अभिन्न और कभी विचार से भिन्न मानता है।
यही विभाजन विचार और विचारकर्ता / विचारक के बीच पैदा होनेवाला आभासी और कृत्रिम विभाजन है।
इस प्रकार एक और नया विचार प्रकट होता है, जो कि :
'मैं विचार से पृथक् स्वतंत्र विचारक हूँ'
की निःशब्द अनुभूति / प्रतीति का रूप ले लेता है ।
यही निःशब्द अनुभूति / प्रतीति पुनः शाब्दिक विचार की तरह मन / चेतना पर हावी हो जाती है, जबकि मन / चेतना मूलतः किसी भी विचार से नितान्त अछूता जीवन्त वर्तमान (living presence) है जिसमें 'मैं-विचार' तक के लिए कोई संभावना या स्थान नहीं होता।
इस 'मैं-विचार' के प्रभाव से ही विचार :
'मेरा विचार', 'मैं सोचता हूँ', 'मैं विचार से पृथक् और स्वतंत्र विचारक / विचारकर्ता हूँ',
इत्यादि अनुमान प्रकट और विलीन होते रहते हैं।
यही है :
वर्तमान का विचार, और विचार का वर्तमान!
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