कविता / 19-03-2022
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षोडशी
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कल भी तो एक दिन ही था,
कल भी तो एक दिन ही होगा,
आज भी एक दिन ही तो है,
जो न तो था, और न ही होगा!
कल जो बीत गया, कल था,
कल जो भी होगा, कल होगा,
आज जो है वह न कल था,
आज जो है वह न कल होगा!
वो क्या है, जो है, आज अभी,
न कल था, न कल होगा कभी!
क्या कोई जान पाएगा इसको,
या सवाल ये, न हल होगा कभी!
खयाल जब ये ठिठक जाएगा,
ये मन अगर न भटक पाएगा,
अचल और स्तब्ध हो जाएगा,
ये राज तब समझ में आएगा!
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