प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्वयुद्ध,
(प्रवियु, द्विवियु और तृवियु)
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कालपुरुष के तीन पुत्र थे, जिनका नाम क्रमशः --
प्रवियु, द्विवियु और तृवियु था। तृवियु को ही त्रिवियु भी कहा जाता था।
एक बार तीनों भाइयों में इस पर विवाद होने लगा, कि उनमें से कौन अधिक श्रेष्ठ, पराक्रमी और निर्भय है।
जब उनमें इस प्रकार से विवाद हो रहा था, तो अंततः विवाद को सुलझाने के लिए वे अपने पिता के पास जा पहुँचे।
"पिताजी! क्या मैं ही मेरे इन दोनों भाइयों से श्रेष्ठ नहीं हूँ!"
-प्रवियु ने प्रश्न किया।
तब द्विवियु ने हस्तक्षेप करते हुए कहा :
"पिताजी! क्या प्रवियु का अन्त होने के बाद ही मेरा जन्म नहीं हुआ था?"
तब त्रिवियु ने उसे टोकते हुए पिता से कहा :
"पिताजी! क्या प्रवियु की ही तरह, इसी प्रकार से द्विवियु का भी अन्त नहीं होनेवाला है? और तब क्या सर्वत्र मेरा ही वर्चस्व नहीं यह जाएगा?"
तब कालपुरुष ने हँसते हुए कहा :
"तुम तीनों मेरे ही अंश हो। हाँ, प्रवियु का अन्त होने पर उसी ने द्विवियु के रूप में जन्म लिया, और द्विवियु का अन्त हो जाने पर वही त्रिवियु के रूप में जन्म लेगा।"
"तो पिताजी! क्या मैं ही अपने दोनों भाइयों से अधिक पराक्रमी और शक्तिशाली नहीं हूँ?"
-त्रिवियु ने उत्साह और गर्व से कहा।
"नहीं बेटा! तुम्हारे जन्म के बाद इस संसार का अन्त हो जाएगा, और इस संसार के ही साथ तुम्हारा भी। किन्तु मैं तब भी अदृश्य होकर नये नये संसार में पुनः पुनः प्रकट होता रहूँगा। यह संसार मेरा ही विस्तार है।"
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